Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 May 2017 · 4 min read

लिपस्टिक की डिबिया

ठण्डी की सुबह अलसाया मौसम, मै जाग चुकी थी किन्तु आँखे बंद किये मै अपनी चादर पैर से लेकर सिर तक खींच कर सोना चाहती हूँ पर माँ की तेज आवाज़ ‘’ अरे स्कूल नहीं जाना है क्या , उठो जल्दी उठो ‘’ बार बार कानो में एक प्रहार की तरह प्रतीत हो रहा था , आखिर हारकर उठती हूँ और स्वयं को स्कूल जाने के लिए अपने आपको तैयार करती हूँ, बाथरूम में माँ ने पानी गर्म करके सारी तैयारी करके रख दिया है मै अलसाई सी अधखुली आँखों से स्नानगृह में प्रवेश करती हूँ , नहा कर बाहर आते ही माँ ने टेबल पर गरमागरम चाय के साथ सुबह का नाश्ता और स्कूल का टिफिन भी तैयार कर रखा है मै कपडे पहन कर टेबल पर बैठे जल्दी जल्दी नाश्ता ठूंसने की कोशिश करती हूँ क्योंकि स्कूल जाने में देर हो रही है माँ मुझे आराम से नाश्ता करने का हिदायत के साथ में स्कूल में मेरे दैनिक रुपरेखा के लिए मुझसे बाते करती है और नाश्ता ख़त्म कर मै स्कूल का बैग उठाये , जल्दी जल्दी बड़े कदमो के साथ स्कूल के लिए निकल पड़ती हूँ , पिताजी अपने ऑफिस जा चुके है यही मेरी दिनचर्या थी, रविवार का दिन या स्कूली छुट्टी के दिन को रोज उंगलियों पर गिने जाते थे कि कब आये और आराम मिले खैर मै माँ-बाप की दुलारी उनके इसी प्रकार के लाड-प्यार से अपनी हाई स्कुल की परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास हुई घर में उत्सव का माहौल बन गया साथ में मेरे आगे के विषयों पर विचार शुरू हुआ अंत में मेरी रूचि साइंस में देख पिताजी ने मेरा दाखिला करवा दिया
मेरे बारहवी के बहुत अच्छे नम्बरों से पास होने पर पिताजी के ख़ुशी का ठिकाना न रहा मेरे सपनो को अब पंख लगने वाले थे मेरी मेहनत ने मुझे मेरी डाक्टरी की के पढाई का रास्ता खोल दिया था और पिताजी चाहते थे कि मै एक सफल डॉक्टर बनू और जिन्दगी की ऊँचाइयों को पाऊं, पिताजी के इस प्रकार के विचारो से मै बहुत गर्व महसूस कर रही थी मेरे आस पास की लडकियाँ प्रायः दसवी या बारहवी के बाद कोई छोटा मोटा कोर्स कर लेती है या उनकी शादी हो जाती है
किन्तु मेरा यह गर्व शायद विधाता को मंजूर नहीं था उसने मेरी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ लाया की मेरा सपना एक अँधेरे में खोने सा लगने लगा मेरे डाक्टरी में प्रवेश से ठीक पहले दुर्घटना में पिताजी का देहांत हो गया, यह घटना मुझे और मेरी माँ को जड़ो से उखड फेंकने के लिए बहुत बड़ी थी अचानक बसा बसाया घर बर्बादी के कगार पर आ खड़ा हुआ, माँ की चीख और दर्द मेरे लिए असहनीय थी क्योंकि उसके दर्द में सिर्फ मै हाँ मै भी सहभागी थी इस प्रकार की वेदना मेरे अंतर्मन को अंदर से चीरती चली जाती थी
मै और मेरी माँ अपने को बहुत अकेली महसूस कर रहे थे सारे रिश्तेदार गधे की सिंग की तरह गायब हो गए थे मै कभी माँ को साहस बंधाती थी और कभी माँ मुझे माँ ने अपने सारे जेवर बेचकर और दुसरो के घरो में काम कर मुझे मेरे पढाई के लिए प्रोत्साहित करती रही आखिर यह हम सबका सपना था विशेषतः पिताजी का भी मैंने डॉक्टरी भी पिताजी की याद में समर्पित करते हुए बहुत अच्छे नम्बरों से पास किया
मै आज डॉक्टर बन अपने आपको एक मुकाम पर ला खड़ा किया आज उसी सच्ची लगन और ईमानदारी से जो पिताजी की धरोहर थी आज मेरे पास मेरा खुद का हॉस्पिटल है, ३-४ कमरों का एक छोटा सा बंगला है , कारे है माँ हमेशा बंगले की चाभी उसी चाभीदानी में लटकाए रहती है जो पिताजी ने एक बार माँ को मेले में खरीद कर दिया था आज भी पिताजी हमारी यादो के हिस्से में हर जगह है प्रेरणा के रूप में , माँ आज भी मेरी जिम्मेदारी उसी प्रकार उठा रही है जैसा स्कूल जाते समय करती थी मेरे खाने से लेकर पहनने तक माँ की ही पसंद होती थी हालांकि उनकी आँखे कमजोर हो गयी है उनकी काम की धुन में उनके आँखों पर लगा चश्मा जो कभी कभी सरक कर उनकी नाक पर आ जाता है ,
मेरी माँ आज भी उतनी शःस्क्त व् दृढ़ परिश्रमी व साहसी है जितना पहले थी बस आजकल उन्हें मेरी शादी की तैयारिओं का जूनून है क्योंकि अगले महीने ही मेरी शादी है और मेरे लिए बाज़ार से कपडे और कई सामान खरीद लाई है आज मै जल्दी आ गयी हूँ और माँ को ढूढते हुए उनके कमरे में दाखिल हुई माँ अपना पुराना संदूक खोले अपने लाल जोड़े को देख रही थी शायद मेरे दुल्हन बनने के स्वरूप को महसूस कर रही थी उसे पता भी नहीं चला मै कब उसके पीछे आ खडी हुई सहसा मेरी नज़र संदूक के कोने में पड़े उस लिपस्टिक की डिबिया पर पड़ी जिसकी रंगत आज मेरे होठो पर ख़ुशी बनी है और ऐसी कई रंगत माएं अपने बच्चो के जीवन के लिए सर्वस्व बलिदान कर देती है , उनका जीवन भी लिपस्टिक की डिबिया की तरह बाहर से कुछ भी नहीं दीखता किन्तु अंदर जीवन का रंग छुपा होता है

Language: Hindi
452 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तभी भला है भाई
तभी भला है भाई
महेश चन्द्र त्रिपाठी
लगी राम धुन हिया को
लगी राम धुन हिया को
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
* खिल उठती चंपा *
* खिल उठती चंपा *
surenderpal vaidya
*सबको भाती ई एम आई 【हिंदी गजल/गीतिका】*
*सबको भाती ई एम आई 【हिंदी गजल/गीतिका】*
Ravi Prakash
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
Arvind trivedi
रामायण में हनुमान जी को संजीवनी बुटी लाते देख
रामायण में हनुमान जी को संजीवनी बुटी लाते देख
शेखर सिंह
💐Prodigy Love-37💐
💐Prodigy Love-37💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
माँ
माँ
shambhavi Mishra
■ आज की प्रेरणा
■ आज की प्रेरणा
*Author प्रणय प्रभात*
Budhape ki lathi samjhi
Budhape ki lathi samjhi
Sakshi Tripathi
हौसला
हौसला
Shyam Sundar Subramanian
मेरे दिल मे रहा जुबान पर आया नहीं....!
मेरे दिल मे रहा जुबान पर आया नहीं....!
Deepak Baweja
इस दुनिया में कोई भी मजबूर नहीं होता बस अपने आदतों से बाज़ आ
इस दुनिया में कोई भी मजबूर नहीं होता बस अपने आदतों से बाज़ आ
Rj Anand Prajapati
23/111.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/111.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
You can't AFFORD me
You can't AFFORD me
Vandana maurya
पंचतत्व
पंचतत्व
लक्ष्मी सिंह
"चाँद-तारे"
Dr. Kishan tandon kranti
नफरतों से अब रिफाक़त पे असर पड़ता है। दिल में शक हो तो मुहब्बत पे असर पड़ता है। ❤️ खुशू खुज़ू से अमल कोई भी करो साहिब। नेकियों से तो इ़बादत पे असर पड़ता है।
नफरतों से अब रिफाक़त पे असर पड़ता है। दिल में शक हो तो मुहब्बत पे असर पड़ता है। ❤️ खुशू खुज़ू से अमल कोई भी करो साहिब। नेकियों से तो इ़बादत पे असर पड़ता है।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
साहित्य सृजन .....
साहित्य सृजन .....
Awadhesh Kumar Singh
साहित्य में साहस और तर्क का संचार करने वाले लेखक हैं मुसाफ़िर बैठा : ARTICLE – डॉ. कार्तिक चौधरी
साहित्य में साहस और तर्क का संचार करने वाले लेखक हैं मुसाफ़िर बैठा : ARTICLE – डॉ. कार्तिक चौधरी
Dr MusafiR BaithA
विश्व शांति की करें प्रार्थना, ईश्वर का मंगल नाम जपें
विश्व शांति की करें प्रार्थना, ईश्वर का मंगल नाम जपें
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म दायनी माँ
जन्म दायनी माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सच और सोच
सच और सोच
Neeraj Agarwal
सुकून की चाबी
सुकून की चाबी
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
जिंदगी बोझ लगेगी फिर भी उठाएंगे
जिंदगी बोझ लगेगी फिर भी उठाएंगे
पूर्वार्थ
दीवार में दरार
दीवार में दरार
VINOD CHAUHAN
समाज सेवक पुर्वज
समाज सेवक पुर्वज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
हे प्रभु !
हे प्रभु !
Shubham Pandey (S P)
Below the earth
Below the earth
Shweta Soni
Loading...