विवेक दुबे "निश्चल" Tag: कविता 53 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid विवेक दुबे "निश्चल" 27 May 2021 · 1 min read जीवन जीवन नही कही सरल है । चलना ही जिसका हल है । घटता कुछ व्योम अंतरिक्ष में भी, सागर तल में भी होती हलचल है । घूम रही है ,वसुंधरा... Hindi · कविता 2 4 363 Share विवेक दुबे "निश्चल" 27 May 2021 · 1 min read मेहमान वक़्त के यहाँ सभी मेहमान है । इस बात से क्यों अंजान है । है ख़बर नही अगले पल की , फिर किस बात का गुमान है । हैं एक... Hindi · कविता 1 4 398 Share विवेक दुबे "निश्चल" 2 Dec 2018 · 1 min read एक प्रश्न यही कुछ कब होता है । कुछ कब होना है । छूट रहे कुछ प्रश्नों में , एक प्रश्न यही संजोना है । गूढ़ नही कुछ कोई , रजः को रजः... Hindi · कविता 303 Share विवेक दुबे "निश्चल" 18 Nov 2018 · 1 min read माँ तु , मुझे, बहुत याद आती है । ज़िंदगी जब भी, मुँह चिढ़ाती है । माँ तु , मुझे, बहुत याद आती है । वक़्त के, तूफान में, कश्ती डगमगाती है । यादों में तु , पतवार मेरी,... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 8 71 420 Share विवेक दुबे "निश्चल" 18 Nov 2018 · 1 min read धूमिल धरा ,रश्मि हीन दिनकर है । 620 धूमिल धरा ,रश्मि हीन दिनकर है । अरुणिमा नही,अरुण की नभ पर है । तापित जल,नीर हीन सा जलधर है । रीती तटनी ,माँझी नहीं तट पर है ।... Hindi · कविता 1 476 Share विवेक दुबे "निश्चल" 18 Nov 2018 · 1 min read एक तस्वीर उतारी एक तस्वीर उतारी अल्फ़ाज़ की । जुबां गुजारिश रही आवाज़ की । खनके न तार मचलकर कोई, ख़ामोश शरारत रही साज की । देखता रहा आसमान हसरत से, हसरत परिंदा... Hindi · कविता 1 2 284 Share विवेक दुबे "निश्चल" 18 Aug 2018 · 1 min read अस्तित्व बून्द चली मिलने तन साजन से । बरस उठी बदरी बन बादल से । आस्तित्व खोजती वो क्षण में । उतर धरा पर जीवन कण में । छितरी बार बार... Hindi · कविता 397 Share विवेक दुबे "निश्चल" 17 Jun 2018 · 1 min read पिता खुशियाँ उसकी , हद नही बे-हद है । औलाद की खुशी पर , वो कितना गदगद है । औलाद से अपनी , उसे इतना ही मतलब है । सोचता है... Hindi · कविता 313 Share विवेक दुबे "निश्चल" 16 Jun 2018 · 1 min read एक चिंतन न तू भगवान है , न मैं हूँ खुदा । न तू कोई गैर है , न मैं हूँ जुदा । रच लिया इंसान ने , कर दिया जुदा ।... Hindi · कविता 276 Share विवेक दुबे "निश्चल" 14 Jun 2018 · 1 min read चल रात सिरहाने रखते है चल रात सिरहाने रखते है । उजियारों को हम तकते है । दूर गगन में झिलमिल तारे , चँदा से स्वप्न सुहाने बुनते है । सोई नही अभिलाषा अब भी... Hindi · कविता 217 Share विवेक दुबे "निश्चल" 12 Jun 2018 · 1 min read एकाकी वो आता उषा के संग , किरण आसरा पाता । संध्या के संग हर दिन , दिनकर क्यों छुप जाता । तजकर पहर पहर सबको , वो एकाकी चलता जाता... Hindi · कविता 437 Share विवेक दुबे "निश्चल" 27 May 2018 · 1 min read जीत का प्रसाद जीत का प्रसाद हो । हार का प्रतिकार हो । नभ के भाल पर , भानु सा श्रृंगार हो । नहीं जीतकर भी , जीत का विश्वास हो । तोड़कर... Hindi · कविता 389 Share विवेक दुबे "निश्चल" 15 May 2018 · 1 min read अंकुर मन के कुछ अंकुर फूटे इस मन में । शब्दों के सृजन सघन वन में । सींच रहा हूँ भावों के लोचन से, भरता अंजुली शब्द नयन में । अस्तित्व हीन रहे... Hindi · कविता 329 Share विवेक दुबे "निश्चल" 13 May 2018 · 1 min read माँ खोकर अपने ख़्याल सारे । बस एक ख़्याल पाला था । हर वक़्त हाथ में उसके , औलाद के लिए निवाला था । रूठता जो कोई क़तरा , जिगर का... Hindi · कविता 471 Share विवेक दुबे "निश्चल" 13 May 2018 · 1 min read माँ तू ही निर्मल , तू ही पावन , तू ही गंगाजल , ऐसा माता तेरा आँचल। तेरे वक्षों से जो सुधा बहे, दुनियाँ उसको सौगन्ध कहे । तेरे पावन स्नेह... Hindi · कविता 255 Share विवेक दुबे "निश्चल" 2 May 2018 · 1 min read वो मेरा हाल पूछ जाता है मैं नही कहता के मुझे, बहुत कुछ आता है । पर जितना भी आता है , दिल कह जाता है । छुपता नही मैं , जमाने की निग़ाह से ,... Hindi · कविता 207 Share विवेक दुबे "निश्चल" 1 May 2018 · 1 min read 1 मई श्रमिक दिवस *श्रमिक दिवस* अंतहीन सी जिसकी , एक कहानी है । जीवन में जिसके, फिर भी एक रवानी है । करता है अथक , परिश्रम निरन्तर , वसुधा भी जिसकी, सदा... Hindi · कविता 176 Share विवेक दुबे "निश्चल" 14 Apr 2018 · 1 min read सुरक्षित कहाँ अब नारी वक़्त बड़ा परवान चढ़ा । बिकने को ईमान चला । देश भक्ति की कसमें खाता, चाल कुटिल शैतान चला । मर्यादाएँ लांघी अपनी सारी , हवस दरिंदा शैतान चला ।... Hindi · कविता 432 Share विवेक दुबे "निश्चल" 10 Apr 2018 · 1 min read वक़्त बड़ा परवान चढ़ा वक़्त बड़ा परवान चढ़ा । बिकने को ईमान चला । देश भक्ति की कसमें खाता, चाल कुटिल शैतान चला । लांघ मर्यादाएँ अपनी सारी , हवस दरिंदा शैतान चला ।... Hindi · कविता 391 Share विवेक दुबे "निश्चल" 30 Mar 2018 · 1 min read पहचान बिन चेहरों के कभी , पहचान नही होती । यह सरल बहुत जिंदगी , पर आसान नही होती । रवि बादल में छुपने से , कभी साँझ नही होती ।... Hindi · कविता 209 Share विवेक दुबे "निश्चल" 28 Mar 2018 · 1 min read यादों में लौटता न यह मन कचोटता है । न यह दिल ममोसता है । चलता था जो उजालों सँग , साँझ सँग वो जीवन लौटता है । क्या पाया क्या खोया ,... Hindi · कविता 240 Share विवेक दुबे "निश्चल" 26 Mar 2018 · 1 min read निश्चल क़दम ठहरा है जो अपने शांत भाव से , शांत सरोवर कुछ कमल लिए । अभिलाषाएँ कुछ कर पाने की , कुंठाएं नही न चल पाने की । सींच रहा अपने... Hindi · कविता 1 228 Share विवेक दुबे "निश्चल" 25 Mar 2018 · 1 min read राम तुम आओ फिर राम आए थे , तुम जब । नष्ट हुआ था , जब सब । राम आए थे , तुम जब । मिटे भय भृष्टाचार सब । पाप व्यभिचार, सब नष्ट... Hindi · कविता 215 Share विवेक दुबे "निश्चल" 24 Mar 2018 · 1 min read हे राम हे राम... आज फिर राम राज्य लाना होगा। लँका जला रावण नाभि सुखाना होगा । जन मानस की ख़ातिर , हे राम तुम्हे वापस आना होगा । अब रावण फैले... Hindi · कविता 388 Share विवेक दुबे "निश्चल" 23 Mar 2018 · 1 min read जल दिवस vivekdubeyji.blogspot.com: हिमागिर पिघलता है । सागर भी उबलता है । तपता है दिनकर, धरा तन जलता है । पास नही देने उसके कुछ, बादल प्यासा ही चलता है । धरती... Hindi · कविता 234 Share विवेक दुबे "निश्चल" 21 Mar 2018 · 1 min read वक़्त वो न रहा यह भी गुजर जाएगा । वक़्त तो वक़्त ही कहलायेगा । ... विवेक दुबे"निश्चल"@... Hindi · कविता 348 Share विवेक दुबे "निश्चल" 7 Mar 2018 · 1 min read तुम ताल न मारो निगल कर दौलत बहु सारी , ज्ञात हुए अज्ञात हैं । पीट रहे लकीरों को , समझ कर अब वो साँप हैं । माना उनकी छाँया में बिषधर , पीते... Hindi · कविता 206 Share विवेक दुबे "निश्चल" 5 Mar 2018 · 1 min read प्रेत अभिलाषाओं का प्रेत एक जागा अभिलाषाओं का । कुछ मृत आस पिपासाओं का । आ कर बैठा है जो कांधों पर , प्रश्न पूछता आधे छूटे वादों का । ले मौन ,... Hindi · कविता 210 Share विवेक दुबे "निश्चल" 4 Mar 2018 · 1 min read कुछ ऐसे होते हैं माता-पिता खूब दुआओं से , सँवारा उसने मुझे । अक़्स अपना , बनाया उसने मुझे । दरिया ख़ामोशी से , बहता था मैं , तूफ़ां समंदर, बनाया उसने मुझे । उकेरकर... Hindi · कविता 240 Share विवेक दुबे "निश्चल" 4 Mar 2018 · 1 min read हम शब्दों से छल करते हैं । शब्द शब्द हम गढ़ चलते हैं। शब्द वही पर अर्थ बदलते हैं। लिखकर शब्दों से शब्दों की भाषा, अक्सर हम शब्दों से छल करते हैं । --- उस दर्द से... Hindi · कविता 219 Share विवेक दुबे "निश्चल" 4 Mar 2018 · 1 min read आशाओं के धुँधले उजियारे उलझ गए कुछ यूँ बातों के बटवारे में, ग़ुम हुए कुछ यूँ शब्दों के उजियारे में। प्रश्न बना खड़ा है जीवन पल प्रति पल , प्रश्नों के अनसुलझे अंधियारे गलियारों... Hindi · कविता 168 Share विवेक दुबे "निश्चल" 3 Mar 2018 · 1 min read श्रृंगारित उर्वी फिर व्यथित देख उसे, हृदय द्रवित उसका । प्रालेय बन अंबर, धरा तन पिघला । छलके स्वेद कण , तन अंबर से , पुलकित उर्वी , तन फिर दमका । आभित... Hindi · कविता 336 Share विवेक दुबे "निश्चल" 3 Mar 2018 · 1 min read एक प्रश्न ? एक प्रश्न ? यह न होता वो होता । वो न होता यह होता । प्रश्न यही चलते ज़ीवन में , यह न होता तब वो होता । वो न... Hindi · कविता 1 238 Share विवेक दुबे "निश्चल" 1 Mar 2018 · 1 min read मंजिल वो खुद बनता है इंसान वही जो , चल पड़ता है । अपनी रहें जी , खुद गढ़ता है । व्यथित नही , थकित नही वो , लड़कर , विषम हालातों से , पुलकित... Hindi · कविता 426 Share विवेक दुबे "निश्चल" 1 Mar 2018 · 1 min read वक़्त मिले आ जाना सुमधुर कामनाएं होली की । स्नेहिल रंगों की बोली की । सजी हुई है थाल हृदय रंग , अहसासों की हमजोली सी । वक़्त मिले तब आना तुम । यादों... Hindi · कविता 213 Share विवेक दुबे "निश्चल" 1 Mar 2018 · 1 min read श्याम सँग होरी श्याम सँग सखी खेलत होरी । तर भई तन मन श्याम रंग से , सुकचत लरजत थोरी थोरी । ओढे जो सँसार चुनरिया , धर दीनी कोरी की कोरी ।... Hindi · कविता 438 Share विवेक दुबे "निश्चल" 27 Feb 2018 · 1 min read स्त्री ... अपराजिता .... स्त्री आई हर युग मे , राह बताने को । अपने को , दांव लगाने को । देश बचाने को , समाज बचाने को । हार गए... Hindi · कविता 189 Share विवेक दुबे "निश्चल" 21 Feb 2018 · 1 min read बीज नफरत के काटेंगा वो क्या फसल प्यार की । बीज नफ़रत का जिसने बोया है । गैरों की ख़ातिर अक्सर हमने, अपनो को ही तो खोया है । बिलिदानों की बलि बेदी... Hindi · कविता 271 Share विवेक दुबे "निश्चल" 15 Feb 2018 · 1 min read गृहस्थ जीवन वो नदिया के दो किनारों से । बीच सँग बहती धारों से । छूते लहरें धाराओं की , कुछ खट्टे मीठे वादों से । प्रणय मिलन की यादों सँग, घटती... Hindi · कविता 841 Share विवेक दुबे "निश्चल" 8 Feb 2018 · 1 min read फिर भी क्यों सिसकतीं हैं बेटीयाँ ? दुनियाँ में नाम भी कमातीं हैं बेटीयाँ । बेटों से आंगे भी जातीं है बेटियाँ । करतीं है तन भी मन भी अर्पण , बेटों को जनने जान लगतीं हैं... Hindi · कविता 438 Share विवेक दुबे "निश्चल" 7 Feb 2018 · 1 min read नानी की कहानी परियों की एक रानी थी । और बूढ़ी एक नानी थी । साँझ ढले दादी माँ , सुनातीं एक कहानी थीं । पीलू जंगल का राजा । धूर्त सियार वो... Hindi · कविता 485 Share विवेक दुबे "निश्चल" 5 Feb 2018 · 1 min read निश्चल निडर बाल मन निश्चल निडर बाल मन ----------------------------- माँ मुझको भी संगीन लान दे , मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ । वीरो के सँग ताल मिलाकर । दुश्मन को ख़ाक मिलाऊँ ।... Hindi · कविता 242 Share विवेक दुबे "निश्चल" 3 Feb 2018 · 1 min read ख़्वाबों की ख़ातिर सोया हूँ ख्वाबों की ख़ातिर , मुझे नींद से न जगाना तुम। आना हो जो मिलने मुझसे, मेरे ख़्वाबों में आ जाना तुम। यह दुनियाँ ,नही ककीक़त । यह दुनियाँ... Hindi · कविता 396 Share विवेक दुबे "निश्चल" 10 Sep 2017 · 1 min read वो फैला था दूर तलक वो, कुछ बिखरा बिखरा सा । यादों का सामान लिए , कुछ चिथड़ा चिथड़ा सा । दूर निशा नभ में श्यामल सी , यादों के आंगन... Hindi · कविता 274 Share विवेक दुबे "निश्चल" 2 Sep 2017 · 1 min read मंज़िल वो मंजिल नई नही थी। बस हौंसले की कमी थी । थे काँटे बहुत राह में , हर कदम तले चुभन बड़ी थी । सफ़र की मुश्किल घड़ी थी ।... Hindi · कविता 316 Share विवेक दुबे "निश्चल" 30 Jul 2017 · 1 min read साश्वत सत्य हाँ मुझे बहुत आँगे जाना है । बहुत दूर निकल अपनों से , अपनों का दिल दुखाना है । लौटूँगा फिर उस दिन में , जब एकाकी हो जाना है... Hindi · कविता 477 Share विवेक दुबे "निश्चल" 3 May 2017 · 1 min read संग्राम सिंगर चले सँवर चले । माथे बाँध कफ़न चले । मातृ भूमि के रण बाँके , युद्ध समर संग्राम चले । विश्व शांति के रक्षक । सर्वजन हिताय के पक्षक... Hindi · कविता 313 Share विवेक दुबे "निश्चल" 3 May 2017 · 1 min read माँ गंगा पतित पावनी निर्मल गंगा । मोक्ष दायनी उज्वल गंगा । उतर स्वर्ग आई धरा पर , शिव शीश धारणी माँ गंगा । जैसी तब बहती थी गंगा । रही नही... Hindi · कविता 636 Share विवेक दुबे "निश्चल" 19 Apr 2017 · 1 min read ज़िन्दगी ज़िन्दगी को न समझ सकी ज़िन्दगी । बस इस तरह कटती रही ज़िन्दगी ।। करती रही वादे बार बार ज़िन्दगी । अनसुलझी सी रही फिर भी ज़िन्दगी ।। पाकर ख्याल... Hindi · कविता 325 Share विवेक दुबे "निश्चल" 13 Apr 2017 · 1 min read अपना खून जब तुम कुछ पल को रोए थे । वो दोनों सारी रात न सोये थे । उठा गोद नंगे पांव ही दोनों दौड़े थे । वैध हकीम डॉक्टर सब टटोले... Hindi · कविता 2 1 245 Share Page 1 Next