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15 Feb 2018 · 1 min read

गृहस्थ जीवन

वो नदिया के दो किनारों से ।
बीच सँग बहती धारों से ।
छूते लहरें धाराओं की ,
कुछ खट्टे मीठे वादों से ।

प्रणय मिलन की यादों सँग,
घटती बढ़तीं धाराओं से ।
सप्तपदी जीवन नदियाँ में,
टकराते मिश्रित धाराओं से ।

सहज रहे हैं समेट रहे हैं ,
अपनी स्नेहिल बाहों से ।
भींग रहे हैं पल हर पल ,
लिपटे चिपटे आभासों से ।

वो नदिया के दो किनारों से।
….. विवेक दुबे”निश्चल”@…

Language: Hindi
760 Views
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