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15 May 2018 · 1 min read

अंकुर मन के

कुछ अंकुर फूटे इस मन में ।
शब्दों के सृजन सघन वन में ।

सींच रहा हूँ भावों के लोचन से,
भरता अंजुली शब्द नयन में ।

अस्तित्व हीन रहे वो अंकुर ,
शब्दों के इस बियाबान वन में ।

घुट कर रह जाते अक्सर जो ,
अर्थो की अक्सर उलझन में ।

वृक्ष घने जिसके सर पर ,
कैसे पहुँचे वो गगन में ।

अंकुर फूटे कुछ इस मन में ।

…. विवेक दुबे”निश्चल”@..
Blog post 14/5/18

Language: Hindi
298 Views
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