विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ Tag: कविता 47 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read इम्तिहान इम्तिहान बहुत हैं जिंदगी में, कदम दर कदम। इम्तिहानों से घबराना कायरता है। जन्म से लेकर, काशीवास तक, इम्तिहानों का दौर चलता है। बचपन से लेकर यौवनावस्था तक विद्यालय का... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 111 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read कुएं का मेंढ़क कुएं का मेंढ़क, कुएं तक ही सीमित रहता है, उसे बाहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं होता है। अपनी इसी सोच के कारण वह कुएं में ही सारा जीवन गुजार... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 133 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read हिम्मत कभी न हारिए सुबह का भूला, दिन में न सही, शाम को भी, घर आ जाए, तो भलमनसाहत है, गुणकथन है। लहरें भी, दूर क्षितिज तक, जाकर, वापस तट तक, लौट आती हैं,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 124 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read नशा नशा बुरा है, इससे बचना ही श्रेयस्कर है। सब जानते हैं, नशा विनाश लाता है, घर बरबाद करता है। परंतु नशा कुछ कर गुजरने का हो, तो वह नशा, कायापलट... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 123 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read हिंसा हिंसा उद्धवंस की जननी है, प्रलयकारी है। जन हिंसा या युद्ध की विभीषिका रक्त-सरिता बहाती है, बसी-बसाई बस्तियों को मुरदघट्टा बनाती है, खाक-ए-दफन करवाती है। शोणित-होली यातुधान खेलते हैं, इंसान... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 150 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read रणचंडी बन जाओ तुम कूद पड़ो रण में ललना, फिर दानव हुंकारा है। छली गई फिर से वल्लभा, तूने क्यों मौन धारा है। उठा खड़ग, शमशीर थाम, पापी को धूल चटाओ तुम। कृष्ण न... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 153 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read जीवन चक्र पटरी पर दौड़ने वाली लंबी सी रेलगाड़ी, आज माचिस की डिबिया सी सटी पड़ी थी पटरी से परे, तर-पर। कहीं हाथ था, कहीं था पांव, कहीं था धड़ मरहूम पड़ा।... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 159 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read अलमस्त रश्मियां कदंब के किसलय से नीरव-सी झांकती, अभिसारी मंदार की अलमस्त रश्मियां। उसकी कर्णप्रिय पद-मंजीर तृण-तृण में मधुर सरगम छेड़ती हैं। एक अकथ अनुराग की साक्षी बनती हैं। अपने झीने आंचल... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 107 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read मुकद्दर मुकद्दर की तरिणी जब दरिया की लहरों से टकरा कर हिचकोले खाते हुए सरिता के तल में समाने लगती है, दिग्भ्रमित, आशंकित। पुरूषार्थ तब मांझी बन कर जल-प्लावित नियति को... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 154 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read आब-ओ-हवा विषाक्त आब-ओ-हवा, जीवन को करती त्रस्त, दिनचर्या होती पस्त। रूग्णता पांव पसारती, कहर बरपाती, बवाल मचाती। दमघोंटू फ़िज़ा, रोगियों की तादाद बढ़ाती, मौत का फरमान ले आती। मानव जनित कृत्य... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 183 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उदर क्षुधा अलस्सुबह उठते ही शुरू हो जाती है, जद्दोजहद, जिंदगी के हर मध्यस्थ से, रणभूमि के रणबांकुरे-सी। उदर क्षुधा उकसाती है, बेबस बनाती है, पिंजरे के दाड़िमप्रिय-सी। निराश्रय मनुज मड़ई से... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 155 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read नारी अंशुमाली की प्रदीप्त रश्मि-सी, तुषार की धवल टोप-सी, सुधांशु की सौम्य कौमुदी-सी, सरिता की विशद तरंगिणी-सी, प्रदीप की सुजागर दीपशिखा-सी भोर की सुरभित मारुत-सी, नारी। गृहस्थ, खेतिहर, कामकाजी, उद्यमी, संयमी,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 114 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उछाह उछाह सफलता के नए सोपान गढता है, शिराओं में तप्त रक्त का उफान भरता है। माउंटेन मैन दशरथ मांझी, जंगल का विश्वकोश तुलसी गौड़ा, सीड मदर राहीबाई सोमा पोपेरे, अक्षर... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 82 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उपहास उपहास करना नितांत सहज है, किसी की भावनाओं को आहत करने और मानसी आघात के लिए। कटाक्ष, क्षणिक तुष्टि का द्योतक है, पर लक्षित के लिए काल बाण-सा। कदापि जाने-अनजाने... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 124 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read पीर स्व की पीर अकुलाती है, शीराज़ा जगाती है, गाहे-बगाहे, काशीवास का आकूत करवाती है, शर-शय्या निश्चेष्ट भीष्म सी। पर पीर गाफ़िल बनाती है, स्वकीय से परे ले जाती है, चढ़ाती... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 131 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read स्मृतियाँ स्मृतियाँ अतीत का चलचित्र बन मानसपट पर उभरती हैं, कौंधती हैं दामिनी सी। कभी सुभग, कभी मर्मघाती, तानाबाना बुनता है उथला सिंधु सा अनुस्मरण। मनुज प्लवक बन जलचर-सा परिपल्व करता... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 117 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read अश्रु अश्रु ढ़रक आते हैं अनायास ही नेत्रों से अंजन को क्षालन के लिए या उर के कुंज में छिपी दारूण वेदना को मुख़्तसर करने के लिए। विनोद की अतिशयता भी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 139 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read सर्दी क्षितिज के छोर से रजत चुनर ओढ़ नव वधु-सी आहिस्ते-आहिस्ते पग बढ़ाती आ ही गई सर्दी। शीत-बयार शस्त्र लिए, सप्त अश्वों पर आरूढ होकर, वीरांगना-सी समर भूमि में कूद पड़ी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 53 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read इंद्रधनुष सात रंग का हार सजा कर नभ के वक्ष पर मुदित भाव से उदित होता इंद्रधनुष। सुख-शांति, वैभव, उमंग, उत्साह विश्वास, शौर्य और जागरूकता का संदेश देता इंद्रधनुष। गिरगिट की... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 141 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read जीवन का सार गृहस्थी का दायित्व, कब अवसान देता है, गाड़ी-सा जीवन जिम्मेदारियों की सड़क पर, सरपट दौड़ता है, अहर्निश अविराम। स्व मनोरथ श्रम-भट्ठी में झोंकता है, स्वजनों के काम्यदान के लिए। तब... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 59 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read गुनगुनी धूप छितराई शबनम छिपा लेती है, दिवाकर मरीचि, और महरूम रखती है गुनगुनी धूप से हर जन को। कंपकंपाती काया, शिथिल अंबक एकटक निहारते हैं खुले द्यौ को आशान्वित होकर। यकीनन... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 85 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read खुशी मुट्ठी भर खु़शी उधार देकर देखिए, असीम सुकून मिलेगा। पल-पल विषण्णता समुपस्थित है। ऊहापोह सनी आबोहवा, कब, किसे, रास आती है, घुटन और सिहरन बढ़ाती है। आनंद के चंद पल,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 134 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read विश्वास नभ में उन्मुक्त, उड़ता पंछी, अपने परों के बूते, मीलों का सफर, तय करता है, अनवरत आगे बढ़ता है। कमरख, तप्त लोहे पर, वार पर वार, करता है, अंततः अपने... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 57 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read हरि द्वार अस्सी बरस की बुधिया, चारपाई पर रजाई से झांकती, रह-रह कर खांसती, आज जमकर पाला पड़ा है, जाड़ा मुंह बाए खड़ा है। सफेद हो गई खड़ी कोंपलें टपक रहे खगों... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 80 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read मेरे हिस्से की धूप सर्द-सर्द रातें हुई, सर्द-सर्द हुए दिन। मिहिका भरमा रही, अब तो हर एक छिन। दिनकर भी ओझल हुए, दिखते अपराह्न बाद। शीत पवन करती फिरे, सबसे वाद-प्रतिवाद। शीतलता कंपा रही,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 101 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 27 Nov 2018 · 1 min read मां मां मां ममता की मूरत है हम सबकी एक जरूरत है। बिन मां के घर सूना होता मां एक शुभ मुहुर्त है। जन्म दिया, खुद दर्द सहा ममता का आंचल... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 3 30 903 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 3 Mar 2018 · 1 min read आम का पेड़ मेरे घर के आंगन में लगे आम के पेड़ ने मुझसे कहा देखो, फाल्गुन के मस्त महीने में मुझ पर बोर लगने लगे हैं। मतवाली कोयल कूकने लगी है पंछी... Hindi · कविता 500 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 1 Mar 2018 · 1 min read रंगों से रंगना सीखो रंग तो आखिर रंग होते हैं बदला नहीं इनका स्वरूप। दौलत की खातिर लोगों ने धारे हैं भांति-भांति के रूप। स्वार्थ की स्याह से मलिन हुए नित मुखौटे पहने नव... Hindi · कविता 696 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 28 Feb 2018 · 1 min read आई होली भीगी चुनरिया भीगी चोली आई होली, आई होली। रंग, गुलाल, अबीर, पिचकारी भर-भर लाई मस्तों की टोली गिले-शिकवे सब वैर पुराने आज मिटाने आई होली। प्रियतम की बाट जोह रही... Hindi · कविता 376 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 26 Feb 2018 · 1 min read कतरे-कतरे का होगा हिसाब इक दूजे की होड़ में भाग रहे हैं सब। मंजिल नजर आती नहीं लक्ष्य सधेगा कब। आपाधापी का है मंजर पैसा बन गया है रब। रिश्तों का कत्लेआम हो रहा... Hindi · कविता 493 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 26 Feb 2018 · 1 min read घर-घर मोदी का उद्घोष दामोदर के लाडले, हीराबेन के लाल नरेंद्र मोदी भारत में, बने हैं एक मिसाल। बुलगारी का चश्मा, रखते मॉ ब्लां का पैन मोवाडो की बांधें घड़ी, आधी बांह का कुर्ता... Hindi · कविता 345 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 21 Feb 2018 · 1 min read रिश्तों का मोल बंधन रिश्तों के इस जग में क्यों कच्चे पड़ने लगे हैं यारो। टूट रहे हैं परिवार यहां पर क्यों सांझे चूल्हे घटने लगे हैं यारो। बिन पैसों के कद्र नहीं... Hindi · कविता 416 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 17 Feb 2018 · 1 min read बुढ़ापे के दिन राम कथा में श्री राम चंद्र जी का जो चरित्र मुखरित हुआ है, यदि आज का इंसान उससे प्रेरणा लेता, तो शायद ! वृद्ध-आश्रम का नामोंनिशान न होता, बूढ़ा पिता... Hindi · कविता 365 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 19 Jan 2018 · 1 min read आज इंसान कम दानव ज्यादा आज सच बेबस, ईमान छला-सा और नेकी ठगी-सी महसूस कर रही हैं। भ्रष्टाचार की जड़ें शनैः-शनैः बढ़ रही हैं समग्र जग को पल-प्रतिपल लील रही हैं। झूठ का चतुर्दिक बोलबाला... Hindi · कविता 376 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 17 Jan 2018 · 1 min read कैसा यह हुआ सवेरा है इंसान नहीं है एक यहां जन-जन हुआ लुटेरा है। ढ़ोंगी और फरेबी देखो घर-घर डाले डेरा हैं। कदम-कदम पर हैं नाग यहां कदम-कदम पर सपेरा हैं। मां-बहनें सरेआम लुट रहीं... Hindi · कविता 288 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 17 Jan 2018 · 1 min read मेरी तरह प्यार में ........ उसकी पायल की मधुर आवाज आज कर्कश-सी और कुछ अधूरापन-सा बया कर रही है, उसकी रूनझुन ध्वनि मेरे कान के पर्दों को चीर रही है। अपनापन, सादगी और प्यार मानों... Hindi · कविता 276 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 17 Jan 2018 · 1 min read जितनी चादर हो उतने ही पांव पसारें गगनचुंबी महल, नोटो भरी तिजोरियां किसे सुकुन देते हैं, कब चैन की नींद सोने देते हैं। पैसा सिर्फ तृष्णा बढ़ाता है, बेचैनी बढ़ाता है। संतोष का एक अंश मात्र ही... Hindi · कविता 246 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 14 Jan 2018 · 1 min read मेरी कविताएं मेरी कविताएं दिशाहीन, किंतु भावपरक हैं, इनमें न तो गेयता है, और न ही कवि-सी पैनी दृष्टि, सिर्फ शब्दों का लबादा ओढ़े मेरी कविताएं दिग्भ्रमित और संप्रेषण के अभाव में... Hindi · कविता 633 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 14 Jan 2018 · 1 min read फिर रीत पुरानी याद आई फिर रीत पुरानी याद आई झूठे रिश्ते-नातों पर कायम अधुनातन जग का आलम, छल-कपट और राग-द्वेष में संलिप्त कलियुग का मानव। मानवता दम तोड़ रही है देख मनुज की चाल... Hindi · कविता 442 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 8 Jan 2018 · 1 min read भारत माता तुम्हें बुलाती वीरों की शहादत के बदले हमने आजादी पाई थी। बरसों अंग्रेजों का जुल्म सहा तब हमने आजादी पाई थी। त्राहि-त्राहि चहुं ओर मची थी कितने मासूमों ने जान गंवाई थी।... Hindi · कविता 299 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 7 Jan 2018 · 1 min read मां ममता की मूरत है मां ममता की मूरत है सबकी एक जरूरत है। अपने सुख की परवाह नहीं बच्चों का शुभ मुहूर्त है। कोख में पाला नौ महीने दर्द सहा था नौ महीने। बच्चे... Hindi · कविता 297 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read नव वर्ष अभिनंदन कुहरे की रजत चादर ओढे अलसाया सा आया मार्गशीर्ष, ठिठुरन, कंपन और शीतलहर संग समेटे लाया मार्गशीर्ष। चुप्पी साधे और अकुलाते दादुर, मयूर, पपीहा, कोकिल की मधुरी वाणी भी सुनती... Hindi · कविता 389 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read आई बैशाखी की रेल झिलमिल करती कनक बालियाँ दिनकर की तपिश किरणों से, शबनमीं समीर में सरपट दौड़ी आई बैशाखी की रेल । हलधर खेतों को कूच कर रहे लेकर दतिया और बैलों की... Hindi · कविता 541 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read बेटी बचाओ, बेटी पढाओ शबनम की बूंदों का दर्पण स्नेह की निर्मल धारा-सी। घर के आंगन की फुलवारी बेटी भोर का तारा-सी। अपना भाग्य लिखवा कर आती सुख-दुख का एक सहारा-सी। दो-दो कुलों को... Hindi · कविता 315 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read वह घूम रही उपवन-उपवन पुष्पों सी नजाकत अधरों पर नवनीत-सा कोमल उर थामे। एक पाती प्रेम भरी लेकर वह घूम रही उपवन-उपवन। सुर्ख कपोलों पर स्याह लटें धानी आंचल का कर स्पर्श। छूने को... Hindi · कविता 464 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read बेटी सर्दी की छुट्टियों में बेटी जब अपने चाचा के घर चली गई। माँ की यादों ने उसको घेरा एक पल भी ना वो वहां रही। माँ के साये में पल-पल... Hindi · कविता 279 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति को किसी की कौन दबा पाया है। यह वो ज्वालामुखी है जिससे विपक्ष भी थर्राया है। अंतस के उद्गारों को कवि साधता है पल-प्रतिपल अपने शब्दों की ताकत से... Hindi · कविता 639 Share