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17 Jan 2018 · 1 min read

कैसा यह हुआ सवेरा है

इंसान नहीं है एक यहां
जन-जन हुआ लुटेरा है।
ढ़ोंगी और फरेबी देखो
घर-घर डाले डेरा हैं।
कदम-कदम पर हैं नाग यहां
कदम-कदम पर सपेरा हैं।
मां-बहनें सरेआम लुट रहीं
कैसा यह हुआ सवेरा है।
धन-दौलत के मद में चूर हुआ
इंसान कहां वो बघेरा है।
रिश्ते-नाते सब टूट रहे
स्वार्थ ने आ सबको घेरा है।
जीना हुआ मुहाल यहां अब
आतंक का साया घनेरा है।
इंसान नहीं है एक यहां
जन-जन हुआ लुटेरा है।

Language: Hindi
257 Views
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