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5 Jan 2018 · 1 min read

बेटी

सर्दी की छुट्टियों में बेटी जब
अपने चाचा के घर चली गई।
माँ की यादों ने उसको घेरा
एक पल भी ना वो वहां रही।

माँ के साये में पल-पल बीता
ना क्षण भर भी वो दूर हुई।
माँ की परछाई बन चलती थी
फिर आज ये कैसी चूक हुई।

इतने नाजों से पाला-पोसा
सौभाग्य से उसको पाया है।
कल परायी हो जाएगी वो
सोचकर मन भर आया है।

बेटियाँ तो होती ही हैं परायी
कब पिता के घर हुआ बसेरा है।
छोड़कर बाबूल का आंगन एक दिन
पिया के घर डालना डेरा है।

दुखों से कभी हुआ न सामना
सुख की छांव में पली-बढ़ी।
कहीं दहेज का दानव न लील ले
यही चिंता बस शेष रही।

विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’

Language: Hindi
254 Views
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