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तेरे ईश्क़ को सलाम दिल-ए-बहारा कर लें
suresh sangwan
सिवा हमारे नफ़रतों को मिटाने वाला कौन है
suresh sangwan
दरवाज़े सबके लिए खोलता है दिल्ली शहर
suresh sangwan
क़ाम कुछ कर न कर बस काम की फ़िकर कर
suresh sangwan
इतराती बलखाती अदाओं के रुख़ मोड़े गये
suresh sangwan
ना इत्तेफ़ाक़ कोई ना कोई क़हर चाहिये
suresh sangwan
रोने कोई देता नहीं और हँसी आती नहीं
suresh sangwan
भीगी पलकें सुखाने में ज़रा तो देर लगेगी
suresh sangwan
नज़रों ही नज़रों में मुहब्बत सी हुई जाती है
suresh sangwan
मोहब्बत से बढ़कर तो इबादत नहीं कोई
suresh sangwan
क्या पाएगा मंज़िल जो अभी चला भी नहीं
suresh sangwan
कुछ इस तरह ज़िंदगी में जान फूँकते रहे
suresh sangwan
सिवा तिरे मेरी दुनियाँ में कोई कमी नहीं है
suresh sangwan
हर गली हर मोड़ पे मेरे कदम अटके बहुत
suresh sangwan
छोड़ो ये बेकार की बातें
suresh sangwan
मेरा पता मुझको बता मेरे ख़ुदा
suresh sangwan
तू सोए तो हो जाएं सवेरे मेरी अना
suresh sangwan
महफ़िल में राज़दारों की बात करता है
suresh sangwan
छोड़ा हाथ हौसले ने न डरूँ तो क्या करूं
suresh sangwan
ये दिल है सरफ़िरा गर कभी घूम गया तो घूम गया
suresh sangwan
बहकने की बात थी कुछ संभलने का इशारा था
suresh sangwan
ख़ामोश रहकर बोलते हैं रंग तस्वीर के
suresh sangwan
मोहब्बत के शरर का नूर है
suresh sangwan
नहीं नफ़रत से ये मोहब्बत से डरा जाय है
suresh sangwan
चल ना होली खेलें यार
suresh sangwan
घटायें गर करके हिसाब चली जाती
suresh sangwan
पुरानी क़िताबों से धूल झाड़ते रहना
suresh sangwan
दीवानगी हद में रही तो मोहब्बत कैसी
suresh sangwan
एक ही सवाल के हज़ारों जवाब मिलते हैं
suresh sangwan
तेरी याद आज फिर चश्म-ए-तर कर गई है
suresh sangwan
इरादा -ए- वस्ल-ए-यार है मौसम जैसा भी हो
suresh sangwan
तुम साथ हो तो मेरा खुदा हो खुदाई हो
suresh sangwan
बज़म-ए-दुनियाँ से दूर कहीं ले चल
suresh sangwan
कारवान -ए- बहार चलें
suresh sangwan
ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है
suresh sangwan
मेरी लाडली तेरा महकना आरज़ू मेरी
suresh sangwan
वतन के बच्चे किधर जा रहे बताओ तो सही
suresh sangwan
हसरतें उठती हैं जज़्बात मचल जाते हैं
suresh sangwan
ख़्वाब मेरी आँखों के न बिखरने देगा
suresh sangwan
वो जबां पर कहकहों का आलम रखते हैं
suresh sangwan
तूने ही आतिश-ए-ईश्क़ लगाई मैने कब चाही
suresh sangwan
शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों
suresh sangwan
वक़्त के पाँव में जंज़ीर डालने का वक़्त था
suresh sangwan
तेरी मुहब्बत में हम खुद से गये हैं
suresh sangwan
बिन मोहब्बत के कहीं अफलाक़ नहीं होते
suresh sangwan
तू वो नहीं इस दिल को बताने के लिए आ
suresh sangwan
कुछ रोज़ का बहकना है और दवा क्या है
suresh sangwan
सूरत- ए- दुनियां सँवरने में देर हो गई
suresh sangwan
दिल-ए-मुज़तर को वाइज़ कोई समझाए तो सही
suresh sangwan
कमल केतकी गुलाब या गुलबहार हो तुम
suresh sangwan