मुक्तक
उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गईं रोशन,
परिंदो! तुम भी अब तैयारियाँ कर लो उडा़नों की,
न जाने कितनी तहज़ीबें बनीं और मिट गईं, लेकिन,
मिसालें आज भी का़यम हैं उन गुज़रे ज़मानों की।
उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गईं रोशन,
परिंदो! तुम भी अब तैयारियाँ कर लो उडा़नों की,
न जाने कितनी तहज़ीबें बनीं और मिट गईं, लेकिन,
मिसालें आज भी का़यम हैं उन गुज़रे ज़मानों की।