मुक्तक
कभी न ख़त्म किया मैंने रोशनी का मुहाज़ ,
अगर चिराग़ बुझा, दिल जला लिया मैनें ,
कमाल ये है कि जो दुश्मन पे चलाना था ,
वो तीर अपने कलेजे पर ही खा लिया मैनें ।
कभी न ख़त्म किया मैंने रोशनी का मुहाज़ ,
अगर चिराग़ बुझा, दिल जला लिया मैनें ,
कमाल ये है कि जो दुश्मन पे चलाना था ,
वो तीर अपने कलेजे पर ही खा लिया मैनें ।