ज्ञान -दीपक
सूर्य डरता ना कभी भी, बदलियों के राज से।
कुछ समय तक छिपे पर वह,पुनि उगेगा नाज से।
मग के पत्थर रोक सकते न कभी *आलोक-डग।
ज्ञान -दीपक जगमगाते, हर्ष बन **ऋतुराज से।
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शब्दार्थ
*आलोक= प्रकाश
**ऋतुराज=वसंत-काल
👉इस मुक्तक को “नायक जी के मुक्तक” और “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” कृतियों में पढ़ा जा सकता है। उक्त दोनों कृतियाॅं अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। उक्त मुक्तक को “नायक जी के मुक्तक” कृति के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
पं बृजेश कुमार नायक
विद्यावाचस्पति
विद्यासागर
प्रेम-सागर
हिंदी-सागर
जालौन रत्न
भारत गौरव
👉पं बृजेश कुमार नायक “हिंदी कवि”, इंटरनैशनल आध्यात्मिक संस्था “आर्ट ऑफ लिविंग” के संस्थापक, विश्व प्रसिद्ध योगी, सद्गुरु श्री श्री रविशंकर के शिष्य हैं।