मुक्तक
दे सजा-ए-मौत या फिर बख्श दे तू जिंदगी,
कशमकश से यार तेरी सख्त घबराती हूँ मैं,
मौन वो पढ़ता नहीं और शब्द भी सुनता नहीं,
जो भी कहना चाहती हूँ कह नहीं पाती हूँ मैं।
दे सजा-ए-मौत या फिर बख्श दे तू जिंदगी,
कशमकश से यार तेरी सख्त घबराती हूँ मैं,
मौन वो पढ़ता नहीं और शब्द भी सुनता नहीं,
जो भी कहना चाहती हूँ कह नहीं पाती हूँ मैं।