मुक्तक
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है,
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है,
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में,
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में।
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है,
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है,
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में,
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में।