मुक्तक
नफ़रत की बाज़ारों में, मोहब्बत बिकते नहीं देखा,
समन्दर के किनारों को, कभी हँसते नहीं देखा,
रहें खुश और दें खुशियाँ, यही अपना तज़ुर्बा है,
गुज़रते वक़्त को हमने, कभी थमते नहीं देखा।
नफ़रत की बाज़ारों में, मोहब्बत बिकते नहीं देखा,
समन्दर के किनारों को, कभी हँसते नहीं देखा,
रहें खुश और दें खुशियाँ, यही अपना तज़ुर्बा है,
गुज़रते वक़्त को हमने, कभी थमते नहीं देखा।