“कई बार हुआ है “
“कई बार हुआ है ऐसा भी लब चुप थे आँखें बोल गईं,
जख्म छुपाए थे गहरे वो राज दिलों के खोल गईं,
कई बार हुआ है ऐसा भी जिन्हें चाहो वही रुलाते हैं,
खामोशी के काँटे लफ्ज़ो से ज्यादा चुभ जाते हैं,
कई बार चुभन की पीड़ा को अश्कों में आँखें घोल गईं,
कई बार हुआ है ऐसा भी लब चुप थे आँखें बोल गईं,
इश्क नहीं आसां होता ये दुनिया को समझाने में,
कई बार फ़ना हो जाते आशिक़ इश्क की साख बचाने में, कई बार इश्क निभाने को रूह जिस्म छोड़ के आती है, राज़ -ए -उल्फत महबूब को फिर फुर्सत से समझाती है,
कई बार निशां पाँवों के हमको राह बताते हैं,
वफ़ा के घर की रिवायत से हमें वाकीफ़ करवाते हैं,
कई बार मेरे अपनों ने मेरे ज़ख्म कुरेदें हैं,
पैगामे मोहब्बत में नफ़रत भर भेजें हैं,
इश्क की हद ऐसी हर बंदिश को तोड़ गई,
देख बुलंद इरादे मेरे मुश्किल भी रुख मोड़ गई,
कई बार हुआ है ऐसा भी लब चुप थे आँखें बोल गईं,
ज़ख्म छुपाए थे गहरे वो राज़ दिलों के खोल गईं”