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31 May 2024 · 1 min read

गृहिणी (नील पदम् के दोहे)

एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल,
कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल ।

चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस,
शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते – जीवन – रोमांस ।

पति पथिक बन कर रहा, पत्नी सम्मुख रोज,
सम्बन्धों से ऐसे में, खो जाते हैं ओज ।

आँखों की शोभा बढ़े, जब लें काजर डार,
सुथरा मैले के सामने, और लगे उजियार ।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “

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