Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 Feb 2017 · 1 min read

विरह गीत

फागुन में मन हिलोर मारे
आईल ना अबहूं सजनवा
सब सखियन मिली ताना मारे
विरह बाण छेदत है करेजवा
मन की मन ही जानै सावरे
जब से गइलै पिया विदेशवा
रात बितल गिन-गिन तारे
न भेजल कोनो पाती न संदेसवा
ए कोयल ले जा तू संदेश हमारे
जा के कहना तुम बिन रास न आवै घर-अँगनवा
आ अब लौट चलो औ परदेशी प्यारे
तोहर धानी सुख भईल ज्यों नागफनी के कँटवा।

Loading...