“वतन के लिए”
“छोड़ दी सारी खुशियाँ वतन के लिए,सरहदों पर खड़े हैं अमन के लिए,
उन बागवानों को भी ना बख्शा किसी ने,आरोप रौंदने का लगाया उसी बाग को, सिंचने को लहू बहाया जिस चमन के लिए,
मुश्किलों में भी वादे निभाते रहे जो, देशहित में अपनी जानें गंवाते रहे जो, कभी सब कुछ लुटा कर बारूदों में बिखरे, लाश भी न मिलती उनकी कफन के लिए,
छोड़ दी सारी खुशियां वतन के लिए,सरहदों पर खड़े हैं अमन के लिए,
जख्म देते हजारों मगर एक भी,पूछने वाला नहीं मरहम के लिए, मशरूफ हैं अपनी जिंदगी में सब,सैनिक मरते हैं जिनकी खुशी गम के लिए,
घर में बैठे हम कोसते हैं खुदा को,वो शिकवा नहीं करते बदलते मौसम के लिए,
छोड़ दी सारी खुशियां वतन के लिए,सरहदों पर खड़े हैं अमन के लिए,
बिलखती है माँ,सिसकती हैं बहनें,पड़ी होती है बेसुध सी बेवा कहीं,तिरंगे से लिपटी हुई लाश पहुंची,शहीद के घर जब दफन के लिए,
दर्द आलम से रूह कांप उठती है अपनी,सुन के होती हैं सच में बहुत ही हैरानी, मुहैया है शहीद के परिजन को जो सुविधा,लगे है कुछ नेता उसमें भी गबन के लिए, बेच खा गए हैं अपनी जमीर वो,बोझ हैं इंसा ये धरती गगन के लिए,
कब तक चुप रहे कुछ तो कहे, गलत है यह सहना सभी के लिए, हक़ सैनिक का सैनिक को मिल के रहे,
आगे बढ़िए अब इस पहल के लिए, आज कुर्बानियाँ दे रहे है,जो हमारे सुरक्षित कल के लिये,
छोड़ दी सारी खुशियां वतन के लिए,सरहदों पर खड़े हैं अमन के लिए।”