Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Jul 2017 · 1 min read

कारगिल विजय दिवस कविता

“कारगिल विजय दिवस”
मापनी-१२२२×४

लगा कर धूल मस्तक पर बहा कर प्रेम की धारा। चला हस्ती मिटाने को भगत आज़ाद सा यारा। वतन पे जाँ फ़िदा कर दे यही ख़्वाहिश निराली है। समर्पण का धरम तुम भी निभाना शौक से न्यारा।

लिए जज़्बा मुहब्बत का, खड़ा सरहद मिटाने को।
वतन काशी वतन काबा वतन पे जाँ लुटाने को।
रखा महफूज़ भारत को लहू अपना बहा करके।
बढ़े जो हाथ उनको काट कर जननी बचाने को।

किया कुर्बान बेटे को तड़प ममता सहा करती।
लिटा कर गोद पूतों को तरसती माँ रहा करती।
लुटा कर जाँ कफ़न ओढ़ा तिरंगा आज वीरों ने।
सुलगती आग चिंगारी नमी बन कर बहा करती।

बचाई शान देकर जान सीमा पर जवानों ने।
बिछा दीं लाश दुश्मन की यहाँ जिंदा जवानों ने।
“अमर ज्योती” सदा जलती दिलाती याद कुर्बानी।
दिखा कर हौसला देखो निशानी दी जवानों ने।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी (उ.प्र.)

Loading...