उसका कोना
घर के छुपे हुए कोने,
जहाँ नजर ठहरती नहीं,
जहाँ ठहरती है आहत सिसकियां,
कभी सुकून के मौन क्षण,
और कभी छूटी हुई सहेलियाँ,
वो बिछड़ी हुई प्रेम कहानियाँ,
ख्यालों में हुई वो मुलाकातें,
अनछुए सलोने से सपने,
बे रोनक दिन को सजाते हाथ,
और खुद से खुद की सहलाती बात,
इन्ही छुपे हुए कोनों में,
रखें होते हैं उसने औरत होने के अहसास,
अजनबी प्रेमी के लिए कढ़े हुए रूमाल,
यहीं एकांत में स्वयं के लिए,
कम्पित होठों से गुनगुनाये हुए गीत,
और कोने पर बहाये आंसू,
जिन्हें स्वयं ही संभालते हुए,
मद्धिम हंसी के तट बंधो में,
विरह की पीड़ा में टूटती हुई,
संयोग के धागों में बंधी हुई,
मुक्ता हार सी एक – एक क्षण को पिरोते हुए,
खुद से ही करती अनगिनत सवाल,
क्यों छोड़ आयी अपने जवाब,
कोने की दीवार पर अक्सर,
यादों की कतरनों को समेटती,
बचपन की बेफ्रिक मस्ती को टटोलती,
माँ- बाप भाई बहिन, दोस्ती को,
खोजती हुई अक्सर उसी कोने में,
जहाँ कभी पंहुच नहीं पाते,
संसारिकआंखें, न कोई डर,
वो घर का कोना, जहाँ स्वतंत्रता बसती है,
और बसती है उसकी रियासत,
उस हर औरत के लिए ,
जो घर की मालकिन कही जाती है,
( सिर्फ कही जाती है)
रश्मि मृदुलिका