+++ नारी की गति +++
नारी की गति—-
समय की गति को अब
जान लीं हैं नारियाँ |
स्वीकार लीं हर चुनौती
कर ली हैं तैयारियाँ ||
निडर हो के छूना है अब
उन्हें आसमान को ||
वापस पाना है समाज में
अपने सम्मान को ||
समय के साथ मर्दों की
कल थी बड़ी मित्रता ||
वक्त को मोड़ लिया है
अब उनकी है पात्रता ||
घड़ी की रफ़्तार-सी
उनको रफ़्तार बढ़ानी है ||
जो खो गई पहचान
उसे अब वापस पानी है ||
लड़खड़ाते कदमों को
फिर से सम्भालना है ||
ज़मीं फूँक-फूँक के फिर
उनको कदम बढ़ाना है ||
उनकी विफलता को
सफलता में ढालना है ||
हम जो हाथ बढ़ाते हैं
उन्हें कश के थामना है ||
भागो, दौड़ो, पकड़ो अब
वक्त की रफ़्तार को ||
मिलेगी मंज़िल अवश्य,
जीत लोगी संसार को ||
घड़ी के साथ तुम पल-पल
कदम से कदम मिलाओ ||
सारी कुंठा, सारी संकीर्णता
अपने मन से दूर भगाओ ||
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दिनेश एल० “जैहिंद”
30. 01. 2017