(((( अकेला ))))
(((( अकेला ))))
***दिनेश एल० “जैहिंद”
कौवों के समाज में बेचारा
एक हंस अकेला क्या करे !
जहाँ महामूर्खों की टोली हो,
वहाँ एक अलबेला क्या करे !!
बनता नया समाज अब धूर्त,
गद्दार, फरेबी, चालबाजों से,,
दो-चार सच्चे ईमानदार सदृश
होके एक-दो ढेला क्या करें ??
सब भाग रहे हैं तेज़ रफ़्तार से
ना सोचे क्या खोया क्या पाया,,
हिल चुका अब बुनियादी ढाँचा
झूठ-दुष्ट का रेलमरेेला क्या करें ??
बड़े मियाँ हैं नेता उनसे है छोटा
राजनेता उनसे छोटा अभिनेता,,
जब गुरू भरे हैं ऐसे-वैसे जहाँ में
फिर ये छुट भैया चेला क्या करे ??
हाथी-ऊँट कई दरिया में बहे जायं
गीदड़ पूछे यारो है कितना पानी,,
डूब गई हज़ार-पाँच सौ की नइया
अब बाज़ार में अधेला क्या करे ??
कह गए बुज़ुर्ग हमारे कहावत के
नहीं फोड़ता भांड़ चना अकेला,,
कैसे रोकूँ मैं घटते ईमान-धर्म को
के “जैहिंद” अब झमेला क्या करे
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