Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Feb 2017 · 3 min read

काव्य का मानवीकरण

काव्य तुम क्या हो शायद तुम नहीं जानते हो और न समझ सकते हो एक विशुद्ध साहित्य से,सह्रदय से ,एक सुखद आलिंग्न की भांति एक ऐसी अनुभूति और एक असहज अनुभव सा हो जो अस्थिर कर सकने में समर्थ हो जो पूर्ववत एवम् अंतहीन हो अंतर में पैठ जाने का सामर्थ्य रखता हो।एक विशुद्ध अनुभव जो कर्मबद्ध बढ़ता ही रहता है और उसे यकीनन इसे टोहने मे समर्थ हो नियतिबद्ध से।पारंगत और निपुण साज़ की सी ध्वनि जहां सदैव गूंजती हो।इसका आगे चलकर कोई भी मायना निकाला जाए पर यहां शब्दों का चातुर्य नहीं वरन् अंतर्मन की एक विशेषाविशेष स्थिति तथा हृदय के उच्छृंखल की अवस्था का अतिक्रमण हो।यूं तो परंपरा का परिचालन अतिआवश्यक हैं अपितु यह अतिनिंदनीय है कि इसका अंत हो या परिवर्तन हो पर यह एक सहज परिपाटी है जो नियमबद्ध और अभिन्न हैं।असहज ह्रदय ये क्यों माने की इस साहित्य का सब अध्ययन करे इसको करीब से जाने ,समीक्षा करें अथवा आलोचना करे और साथ साथ यदा कदा अन्तर्मन में उद्वेलित करें।
किंतु साहित्य है तो समीक्षा भी होगी आलोच्य भी होगा वरन् मथा भी जायेगा और गहन अध्ययन भी होगा।अतएव साहित्य भावों का उच्छृंखल है जो एक भाषा की भांति जो समयानुरूप प्रचलित रहती है।काव्यकार कोई भी हो निपुण या अनभिज्ञ अपने विरल अनुभव से काव्य रचना करना समझता है और अपनी लेखनी की चाशनी से उसे समाज के सम्मुख रखता है।समय के साथ साथ साहित्य समीक्षक के अधीन हो अपनी विशुद्धता समाप्त कर सहज हो जाता है और असल साहित्यकार जिसकी वो पाण्डुलिपि थी या प्रथम कृति थी पूर्व में बल्कि भाव से परे हो उठती है।लेकिन यह भी अनौचित्य है कि उसका मंथन न हो उस पर कोई टिप्पणी न हो । सृजन एक व्यैक्तिक क्रिया नहीं अनेक संकल्पनाओं का गहन मिश्रण है।यह मिश्रित विचारों की सूझबूझ एवम् व्याख्या है।यहां किसी का एकमत होना कोई जरुरी विषय नहीं फिर भी काव्य की रचना में सबका ध्येय पूर्णरूप से अथवा अपूर्ण रूप से एकसमान होता है।इस पर तर्क वितर्क का होना काव्य के लिए महत्वपूर्ण है।समीक्षा और आलोचना काव्य और काव्य सर्जक के अभिन्न अंग है अतः किसी भी समीक्षा या आलोचना की पुष्ठि को काव्य के लिए हितकर माना चाहिए।साहित्य के रचने से पूर्व कवि एवम् लेखक का लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए अन्यथा काव्य अपूर्ण है।काव्य के प्रति तादात्मय होना सहज विषय है किंतु काव्य के गूढ़ अर्थ को समझना अपरिहार्य है अपर्याप्त सा विषय है।यह अतिनिंदनीय कथ्य है कि अतिविशेष काव्य की समीक्षा आलोचना किसी मूढ़ व्यक्ति के हाथों हो यहां अर्थ का अनर्थ होने का अंदेशा हर पल रहता है और आगे भी रहेगा।काव्य रचना कवि की आंतरिक सोच का परिणाम एवम् एक अच्युत विषय है जो गूढ़ रहस्य से ओतप्रोत है।यह गुड़ का ढेला नहीं जो किसी भी मिष्ठान में सम्मिश्रित किया जा सके।जैसा कि रीति कवि ठाकुर ने कहा था।
“ढेल सा बनाय आए मेलत सभा के बीच,कवितु करन खेलि करि जानो है।”
ये कवि की संकल्पना है जिसमें उसकी अनेकानेक अनुभूतियां एवम् सानिध्य संलग्न है।यह कवि का अनछुआ प्रेम है जो कागद लेखनी संग ह्रदयों में उतरने बसने की क्षमता रखता है।

मनोज शर्मा
9868310402

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 792 Views

You may also like these posts

तन्हाई में अपनी
तन्हाई में अपनी
हिमांशु Kulshrestha
समय को समय देकर तो देखो, एक दिन सवालों के जवाब ये लाएगा,
समय को समय देकर तो देखो, एक दिन सवालों के जवाब ये लाएगा,
Manisha Manjari
फिर आई बरसात फिर,
फिर आई बरसात फिर,
sushil sarna
श्री राम जी अलौकिक रूप
श्री राम जी अलौकिक रूप
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
बसंती हवा
बसंती हवा
Arvina
घृणा प्रेम की अनुपस्थिति है, क्रोध करुणा और जागरूकता का अनुप
घृणा प्रेम की अनुपस्थिति है, क्रोध करुणा और जागरूकता का अनुप
Ravikesh Jha
स्मृतियाँ
स्मृतियाँ
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
श्रृगार छंद - मात्रिक
श्रृगार छंद - मात्रिक
पंकज परिंदा
महाप्रयाण
महाप्रयाण
Shyam Sundar Subramanian
तुम वह सितारा थे!
तुम वह सितारा थे!
Harminder Kaur
प्रेम वो भाषा है
प्रेम वो भाषा है
Dheerja Sharma
प्यासा के कुंडलियां (झूठा)
प्यासा के कुंडलियां (झूठा)
Vijay kumar Pandey
.
.
*प्रणय*
चलो अब हम यादों के
चलो अब हम यादों के
Dr. Kishan tandon kranti
बात करोगे तो बात बनेगी
बात करोगे तो बात बनेगी
Shriyansh Gupta
राम सीता
राम सीता
Shashi Mahajan
हिंदी भाषा नही,भावों की
हिंदी भाषा नही,भावों की
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
लड़की कभी एक लड़के से सच्चा प्यार नही कर सकती अल्फाज नही ये
लड़की कभी एक लड़के से सच्चा प्यार नही कर सकती अल्फाज नही ये
Rituraj shivem verma
गनर यज्ञ (हास्य-व्यंग्य)
गनर यज्ञ (हास्य-व्यंग्य)
गुमनाम 'बाबा'
1) जी चाहता है...
1) जी चाहता है...
नेहा शर्मा 'नेह'
"टूट कर बिखर जाउंगी"
रीतू सिंह
नववर्ष
नववर्ष
Sudhir srivastava
प्रीति रीति देख कर
प्रीति रीति देख कर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
गांव की झोपड़ी
गांव की झोपड़ी
Vivek saswat Shukla
इस तरह कब तक दरिंदों को बचाया जाएगा।
इस तरह कब तक दरिंदों को बचाया जाएगा।
सत्य कुमार प्रेमी
जिंदगी की राह में हर कोई,
जिंदगी की राह में हर कोई,
Yogendra Chaturwedi
दिवाली
दिवाली
नूरफातिमा खातून नूरी
4137.💐 *पूर्णिका* 💐
4137.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"अपनी भूल नहीं मानते हम ll
पूर्वार्थ
माँ का द्वार
माँ का द्वार
रुपेश कुमार
Loading...