Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Jan 2017 · 2 min read

आर्यावर्त की गौरव गाथा

आर्यावर्त की गौरव गाथा

भ्रमण करते ब्रह्मांड में असंख्य पिण्ड दक्षिणावर्त
सुदुर दिखते कहीं दृग में अन्य कोई वामावर्त
हर विधा की नवीन कथा में निश्चय आधार होता आवर्त
सभी कर्मों की साक्षी रही है, पुण्य धरा हे आर्यावर्त !
यह पुण्य धरा वीरों की रही है
प्रफुल्लता, नवसष्येष्टि सदा बही है
कोमलता ! लघुता कहाँ ? पूर्णता रही है ;
आक्रांता उन्माद को प्रकृति ने बहुत सही है |
सत्य की संधान में
विज्ञान अनुसंधान में
विश्व – बंधुत्व कल्याण में,
करुणा दया की दान में
नहीं अटूट अन्यत्र है योग
और न ही ऐसा संयोग|
संसार में शुद्धता संचार में
प्राणियों में पूर्णता से प्यार में
योग, आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार में
भूमण्डल पर नहीं कोई जगत् उपकार में ;
ये केवल और केवल यहीं पे,
आर्यावर्त की पुण्य मही पे !
जहाँ सभ्यता की शुरूआत हुई, हर ओर धरा पर हरियाली
ज्ञान- विज्ञान के सतत् सत्कर्म से फैली रहती थी उजियाली,
हर क्षेत्र होता पावन – पुरातन बच्चों से बूढों तक खुशिहाली
कुलिन लोग मिला करते परस्पर, जैसे प्रातः किरणों की लाली !
पर हाय! आज देखते भूगोल को
नीति नियामक खगोल को ;
खंडित विघटित करवाया किसने ,
कर मानवता को तार- तार,
रक्त- रंजित नृत्य दिखाया किसने !
यह सोच सभी को खाती है
अब असत्स अधिक ना भाती है
झुठलाया जिसने सत्य को
दबाया जो अधिपत्य को ,
इतिहास ना उन्हें छोड़ेगा ,
परख सत्य ! कहाँ मुख मोड़ेगा |
आर्यावर्त का विघटित खंड,
आज आक्रांताओं से घिरा भारत है;
शेष खंड खंडित जितने भी,
घोर आतंक भूख से पीड़ित सतत् है |
मानवता के रक्षक जो अवशेष भूमी है
प्राणप्रिय वसुंधरा , समेटी करूणा की नमी है;
हर ओर फैलाती कण प्रफुल्लता की, धुंध जहाँ भी जमी है;
अनंत नमन करना वीरों यह, पावन दुर्लभ भारत भूमी है !

अखंड भारत अमर रहे !

© ✍ कवि पं आलोक पान्डेय

Loading...