लाल लिबाज

आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
देख उसे न जाने दिल में,
क्यूँ बजने लगा है साज।
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
कमसिन सी आंखे उसकी,
मुझको कुछ बतलाती हैं।
जैसे कुछ मैं लिखना चाहूँ,
मुझको याद दिलाती हैं।
देख उसे कितनों पर देखो,
अब गिरने लगी है गाज।
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
रूप सौंदर्या की आभा ऐसी,
जैसे चाँद निहारे है।
होंठो पर मुस्कान है ऐसी,
जैसे चमके सितारे है |
कानों के झुमके हैं करते,
उसके आने का आगाज़ |
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
आसमान से उतरी है वो,
संगमरमर सी काया है |
लाल रंग की साड़ी पहने,
लगती कोरी माया है |
पहना दूँ मै उसको अपने ,
सारे अरमानो का ताज |
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
उसका है अंदाज अनोखा,
वो दिल को मेरे भाती है |
पास नहीं वो रहती मेरे,
दूर से मुझे सताती है |
मेरी कविताओं में अब तो,
खुलने लगे हैं दिल के राज |
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
उसकी सुंदरता पर लिख दूँ
एक नहीं मै चार किताब |
आज मुझे फिर भा गया,
उसका पहना लाल लिबाज।
प्रदीप गुप्ता
०८/०४/२०२५