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11 Jan 2017 · 2 min read

लहर ' नोट बंदी अभिशाप या वरदान'

“यह रचना उस समय लिखी गई जब देशवासी नोट बंदी से बेहाल थे।”

मेरे देश में एक नई लहर चली है।
नोट बंदी को लेकर एक नई जंग छिड़ी है।
इस सर्जिकल स्ट्राईक से पूरी काला बाजारी रूकी है।
नोट रखते थे जो घर के बिस्तर के अंदर।
निकल नोट आए सब, कूंचे चौबारों में लद कर।
कोई फैंके नहर में कोई फैंके डगर पर।
रखते नहीं अब वो घर,दर के अंदर।

आया है कैसा ये मंजर अनोखा।
कैश रखने से डरते,जो रखते थे भरकर।
मगर मार भारी पड़ी है ये उनपर,
जिनके लाले थे खाने के पहले भी घर पर।
नहीं मिल रहा पा, उन्हें दूध, अन्न,फल।
बिना कैश कैसे ले पाएंगे ये सब।

कदम है तो कहने को ये बहुत अच्छा।
मगर टूटी कमर है, गरीबों की बच्चा।
न खाने को आटा न रोटी न ख़ाता।
कहां से वो लाएगा कपड़ा और लत्ता।
बैंको में देखो ये लंबी कतारें।
ए टी एम पर ही कटती मां-बाबा
की रातें।
ये कैसा समय आया देखो रे भैया।
नहीं मिल पाया यहां,अपना रुपैया।

कोई रखके आई बच्चे ताले के अंदर,
कोई लेके आई बेटी की शादी का
पत्र।
नहीं मिल पाया यहां, इनको पैसा समय पर।
दे दी है जान लंबी लाईनों में लगकर।

ये कैसी लहर कैसी है ये व्यवस्था।
लंबी-लंबी कतारों में बेटी और अम्मा।
किसी घर मैं मातम सा छाया हुआ है।
कहीं मरे बाबा को लाया गया है।

कहने को है ये योजना गजब की,
लागू होते ही इसने खस्ता हालत सी कर दी।
बिना सोचे- विचारे ये लागू तो कर दी,
पूरे भारत की बरबस दुर्दशा सी है कर दी।

किसानों की हालत भी अच्छी नहीं है,
पैसा न होने से उपज भी नहीं है।
कहां से उगाएगा, कहां से खिलाएगा,
ऐसा ही रहा तो, देश पिछड़ता चला जाएगा।
न होगा आयात न होगा निर्यात,
ठप होगी व्यवस्था,हो जाएगा बुरा हाल।
अरे कुछ तो सोचो समझो विचारो,
व्यवस्था का व्यवस्थापन अच्छे से करवा दो।
ये कैसी तुम्हारी कैश लैस व्यवस्था है,
कैश नहीं है किसी के भी घर पर पर​ न दर पर।
हाल ज्यादा खराब उनका हुआ है, जो रहते मध्यम वर्ग और गरीबी रेखा के अंदर।

अरे अब बताओ, चलाएं कैसे, ये घर अपना,
प्लास्टिक मनी से काम नहीं बनता है इनका।
प्लास्टिक मनी को लेकर के जाते है जब ये।
दुकानों में नहीं काम करता है सर्वर।
कैसे चलेगा अब आगे ये जग, जन।
उपाय जल्द ढूंढो इस त्रासदी का बस अब।
कैसे चले रोज़मर्रा का जीवन हमारा,
बिना पैसे रूक सा गया है ज़माना।
धुंआ ही धुआं दें रहा है ये हर पल,
करो कुछ उपाय संभालो इसे अब। संभालो व्यवस्था का वृहद समंदर, नहीं तो डूब जाएगा पूरा भूमंडल।।।।

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