प्रिये लेखनी , सखी — संगिनी :– जितेंद्रकमल आनंद ( पोस्ट १३७)
प्रिये लेखनी , सखी – संगिनी , तुमको सम्बोधन क्या — क्या दूँ ।
रहीं अर्पिता जीवन भर तुम , अब मैं उद्बोधन क्या — क्या दूँ ।
अंतिम पल तक साथ निभाने , तुम्ही लेखनी कर में आयीं ।
जब कुछ कह न सका अधरों से , तभी लेखनी कर में आयीं ।।
( एक चरण का गीत )
—– जितेंद्रकमलआनंद
रामपुर ( उ प्र )| दिनॉक : ९-११-१६
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