संदलकी छॉहों में दोनोंगा प्यार पले।जितेंद्रकमलआनंद(१०६)
गीत
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संदलकी छॉहों मे् दो ों का प्यार पले
झर- झर- झर निर्झर – सा मनहर यह गाना है ।।
मन ही देवालय हो , मन ही अपनापन हो ।
अनबोले ,अनजाने मिल जाता जीवन हो ।
ऑखें रों बंद मगर दिखती प्रभु– मूरत हो ।
मनमोहक मोहनकी मुरली से सृजन| हो ।
भावौं का मंथनही विष पीना, अमृत का पाना है।।
भर जाये धारा यदि रीते मम पनघट को
कर देती निश्चय ही शीतल वह मनघट को ।
मिल जाये थोड़ी – सी मधुता यदि अमृतमय,
कर देगी स्पन्दित आह्लादित तन- घट को ।
संदलकि छॉहों में दोनों का प्यार पले ।
झर– झर- झर– निर्झर – सा मनहर यह गाना है।।
—- जितेंद्रकमलआन्द
सॉई बिह्र कालोनी , रामपुर ( उ प्र ) २४४९०१