चाहते न थोपना पर, हम ज्ञान :: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट७३)
राजयोगमहागीता: घनाक्षरी छंद क्रमॉक७/२१!!सारात्सार–
**********चाहते न थोपना पर, हम ज्ञान इसका,
वेद अतिरिक्त भी है, और उसको कहा ,
होकर समदर्शी जो आत्म- अनुभूति हुई ,
उसको ही मैं यह बिना कहे नहींं रहा ।
करके सत्यार्थ का मनन ,मन सानंद हो ,
भूल गया सारा दुख – दर्द जो मैंने सहा ।
भूल गया द्वैत– द्वैष ,हो गया कृतार्थ मैं हूँ ,
अष्टावक्र गीता की तरंग में ऐसा बहा ।।
—– जितेंद्रकमलआनंद रामपुर ( उत्तर प्रदेश ) भारत