मां की ममता पिता का प्यार
शीर्षक: मां की ममता पिता का प्यार
✍🏼 रचनाकार – शाहबाज़ आलम “शाज़”
सुबह हुई, सूरज मुस्काया,
मां ने बच्चों को जगाया।
पुचकारा फिर प्यार से बोली —
“उठो बेटा, स्कूल का समय आया।”
नींद में डूबी आंखों को,
ममता का स्पर्श जगाता है,
टिफ़िन में भर प्यार का स्वाद,
मां हर दिन स्नेह सजाती है।
पापा उधर उठते हैं धीरे,
थकान रात की मिट जाती है,
बच्चों को स्कूल छोड़कर फिर,
कारखाने की राह पकड़ जाती है।
मां घर में सब काम संभाले,
झाड़ू, बर्तन, रसोई सारे,
हर सांस में बस एक ही चाह ,
सुखी रहें उसके लाड़े-प्यारे।
शाम ढले जब दस्तक होती,
दरवाज़ा जैसे मुस्काता है,
बच्चों की हंसी, पापा की थकान,
मां के दिल को सुख पहुंचाता है।
यही तो उसका प्यारा घर है,
यही तो जीवन का आधार,
मां और पापा की मेहनत से,
चलता दुनिया का ये संसार।
शाहबाज़ आलम “शाज़”
(युवा कवि, स्वरचित रचनाकार
सिदो-कान्हू क्रांति भूमि, बरहेट सनमनी)