मन के आंगन में एक दीप जलाओ
मन के आंगन में एक दीप जलाओ
राग, द्वेष को भस्म कर
उसमें अच्छे विचारों
के नव फूल खिलाओ
प्रकाशमय हो आपका व्यक्तित्व
छलके उसमें सबके लिए प्रेम
ऐसे चरित्र का निर्माण कर
बनाए अपना एक अस्तित्व
इंसान की पहचान इंसानियत से हो
सब जीवों के लिए सद्भाव हो
भूल से भी ऐसी बोली ना निकले
जो दूसरों के लिए कष्टप्रद हो
सब की उन्नति में
हम अपनी उन्नति देखें
यदि दुख हो किसी को
उसको अपना दुख समझे
अपनी मर्यादा को समझ
सबका करे सम्मान
व्यवहार अपनी हो ऐसी
जिससे बने अपनी पहचान
जिससे बने अपनी पहचान