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7 Oct 2025 · 1 min read

*"स्वयं से मुलाकात"*

“स्वयं से मुलाकात”

कभी यूँ ही थम गए कदम,
जब सब था पास, पर कुछ कमी थी,
एक शून्य था भीतर कहीं,
जो बोलता नहीं था, पर सुनाई देता था।

भीड़ में चेहरों के बीच,
एक चेहरा था, मेरा अपना,
जिसे बरसों से देखा नहीं,
जिसे बरसों से समझा नहीं।

आँखों में झाँका तो आँसू मिले,
जो मुस्कानों के पीछे छुपे थे,
दिल में गयी तो आवाज़ मिली,
जो हर शोर में दबी थी।

मैंने खुद से पूछा,
“कौन हूँ मैं?”
उत्तर नहीं मिला तुरंत,
पर एक सन्नाटा था, जो सब कह गया।

धीरे-धीरे वो सन्नाटा बोलने लगा,
उसने कहा,
“तू वही है, जो हर रिश्ते में खुद को भूल बैठी,
अब लौट चल,
क्योंकि असली घर तेरे भीतर ही है।”

उस दिन जाना,
‘स्वयं से मुलाकात’ कोई पल नहीं,
एक यात्रा है;
जो भीतर से बाहर नहीं,
बाहर से भीतर जाती है।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”

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