भाषा के राग अमर
✍️ श्रीहर्ष
🌺 मुखड़ा (कोरस):
**मीठ तोहर मुस्कान, सजनी बोल,
मिथिला-अयोध्या, हृदय तोहार।
लोरी सन गूँज, मंत्र सन बतिया,
त्रिवेणी बानी, मन के मोल।
(भाषा नहि शब्द, आत्मा केर राग) **
पहिल अंतरा – मिथिला के बानी
मिथिला माटी, जननी केर स्वर,
सीता के मौन, गार्गी के घर।
लोरी माँ गाव, राति के चाँद,
जिज्ञासा जाग, ज्ञान केर बंध।
मुखड़ा दोहराउ…
दोसर अंतरा – संस्कृत केर साधन
संस्कृत मंत्र, यज्ञ के गान,
पाणिनि सूत्र, शब्द के प्रान।
वशिष्ठ-विश्वाम, अयोध्या धाम,
उपनिषद बानी, आत्मा केर नाम।
मुखड़ा दोहराउ…
तिसर अंतरा – प्राकृत केर प्रेम
प्राकृत सरहज, जन-मन राग,
बुद्ध के बोल, करुणा के भाग।
लोक-गीत गाव, गाँव के लोग,
सहज बानी, प्रेम केर रोग।
मुखड़ा दोहराउ…
चौथा अंतरा – देशजनी लोरी
देशज बानी, माँ केर कंठ,
हनु सन सीता, बोलल संनाद।
मैथली स्वर, मिथिलासा जीव,
खेत-खलिहान, स्नेह केर दीप।
मुखड़ा दोहराउ…
पाँचम अंतरा – त्रिवेणी संगम
त्रिवेणी बहे, भाषा के नीर,
विद्यापति गीत, राधा-कन्हाई।
मिथिला-अयोध्या, एक स्वर गान,
भाषा अमर, आत्मा केर प्रान।