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7 Aug 2025 · 1 min read

कहिया अइबऽ हो सजनवा?"

कहिया अइबऽ हो सजनवा, बिदेसवा गेलऽ छोड़ि?
हम त बाटे तकइत-तकइत, लोरवा नयन से फूटि॥

झुलना सूतल अंगनवा में,
बेर-बेर झकोरि पूछे — “कब अइबऽ तोर पिया?”
फुलवा मुसकइत, हम त सूखल,
बोली नै निकसे हो, मरि जइबऽ चुपचापे घोरि॥
कहिया अइबऽ हो सजनवा…

छिन-छिन भोर होइ छै, छिन-छिन साँझ,
तूँ नै अइलऽ, सासुओ कहे — “भुला गेलऽ बाउ ?”
चूड़ी काँच की फूट गेल नैना में,
सेन्हुरिया धूसर, मड़ुआ तेलवा टपकऽ न जोबन चोरि॥
कहिया अइबऽ हो सजनवा…

चरन में गहना, तोर बिसराइल परछाई,
पनघट पर हँसी उड़ावऽ बालम बिना सगाई।
तोरे सनेसिया लऽ के अइल चिट्ठिया,
कहऽ रहलऽ — “सावन अइलऽ, त तूँ खिसिअइलऽ मोरी?”
कहिया अइबऽ हो सजनवा…

–श्रीहर्ष

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