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4 Oct 2025 · 2 min read

#लघुव्यंग्य

#लघुव्यंग्य
■ अगर हों 50 फ़ीसदी हुनर।
【प्रणय प्रभात】
“बेकारी को रोना छोड़ो, बेगारी को अपनाओ।
निम्नलिखित गुण पास अगर हों, तो ख़ुद पे ख़ुद इतराओ।।
मंत्र मलाई पाने वाला, आज बताता हूँ सुन लो।
सतरंगी सपनों की चादर, बस कुछ मिनटों में बुन लो।।
गाली देना, आँख दिखाना, बाँह चढ़ाना आता हो।
घड़ियाली टसुए भी, आंखों से टपकाना आता हो।।
कही बात को झुठला देना, राज़ छुपाना आता हो।
डींग मारना, पींग बढ़ाना, गले लगाना आता हो।।
समय मुताबिक भेष बदलना, रोना-गाना आता हो।
झूठी-सच्ची कथा सुनाना, व्यथा भुनाना आता हो।।
बंदर-घुड़की, गीदड़-भभकी, नाच नचाना आता हो।
चन्दाखोरी, चौथ-वसूली, रंग दिखाना आता हो।।
शोर मचाना, बंद फोन पे धौंस जमाना आता हो।
नूरा-कुश्ती, चोंच-चकल्लस, दांव लगाना आता हो।।
नारेबाज़ी, पत्थरबाज़ी, आग लगाना आता हो।
मावस की काली रातों में, चाँद दिखाना आता हो।।
बिन गुड़ के गुलगुले पकाना और खिलाना आता हो।
नंगे हो पंगे लेना, दंगे भड़काना आता हो।।
आँख का काजल या मुर्दों का, क़फ़न चुराना आता हो।।
इसकी टोपी उस पे रख, अहसान जताना आता हो।
अपने हाथों खुद अपनी ही, पीठ खुजाना आता हो।।
जागी हुई भीड़ को दिन में, ख़्वाब दिखाना आता हो।
झूठे वादों के गूलर में, फूल खिलाना आता हो।।
जैसा देश वहाँ पे वैसा, वेश बनाना आता हो।
मौक़ा पड़ने पर गदहे को, बाप बनाना आता हो।।
ठुमके देना, ताल मिलाना, गाल बजाना आता हो।
बहुरुपिए से आगे बढ़ के, स्वांग रचाना आता हो।।
चम्पी-मालिश, जूता-पालिश, चरण दबाना आता हो।
ज्ञान बाँटना, थूक चाटना, मार पचाना आता हो।।
अपना आगत उज्ज्वल मानो, आज, अभी से तन जाओ।
पढ़-लिख के क्या खाक़ करोगे? फ़ौरन नेता बन जाओ।।
बहुत सारे हुनर अभी बाक़ी हैं। याद आने पर जोड़ दिए जाएंगे। समय ख़ुद को साबित करने का है और सीज़न चुनाव का। लपक कर चढ़ जाओ सियासत की हिचकोले खाती गत्ते की नाव पर। अगर आपके पास हों बताए गए उक्त गुणों में से मात्र 50 फ़ीसदी भी गुण।।”
आत्मकथ्य के रूप में इतना सा और कह दूं कि सियासत की काजल जैसी काली कोठरी में कुछ बेदाग़ नेता अब भी हो सकते हैं। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि पंजे में चार उंगलियों से अलग एक अंगूठा भी होता है, जिस बेचारे को उम्र भर अपने नाम के मुताबिक एक अंगूठी तक नसीब नहीं होती। बेचारा या तो देखने के काम आता है या फिर दिखाने के। कभी कभी यहां वहां लगाने के।
यही हाल “दाग अच्छा” बताने वाले दौर में बेदाग नेताओं के हैं। जो दागियों व बागियों को केंद्र की ओर धकेल कर खुद हाशिए की ओर बढ़ रहे हैं।
यह भी उतना ही बड़ा और कड़ा सच है, जितना चील के घोंसले में चन्दन का न मिलना। ऐसे में जिनके पास उपरोक्त हुनर नहीं, वे कोई और धंधा तलाशें। मसलन पकोड़े तलना और बेचना, रेहड़ी पटरी लगाना या मिस्त्री, राज मिस्त्री बनना आदि आदि। घर की गाड़ी चलाना हो तो।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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