प्रेम मर्यादा
“प्रेम”
एक वर्ण नहिं,
उक्ति नहिं, पंक्ति नहिं….
गद्यांश नहिं, पद्यांश नहिं…
कोई ग्रंथ नहिं,
कोई जाति नहिं, कोई धर्म नहिं,
कोई कर्म भी नहिं…
“प्रेम”
पवित्र वंदना है, आराधना है…
अर्चना है, आरती है,
संकल्पना है, संवेदना है…
अनुभूति है, अनुराग है
“प्रेम”
तीक्ष्ण वायु का झोंका नहिं,
अवमानना नहिं, संशय नहिं….
ईर्ष्या नहीं, द्वेष नहीं,
घृणा नहिं, तिरस्कार नहीं…
“प्रेम”
स्नेहिल शीतल हवा का एक झोंका है…!
एक-दूजे का
सम्मान है, आस्था है…
वेदना में मुक्ति, विश्राम है…
स्त्री की लज्जा, पुरुष की मर्यादा है,
एक मृदुता तो दूसरा सौम्यता है…
जटिलता में दिग्दर्शक है…
“प्रेम”
मनुष्य के रूप में
मनुष्यता के तत्वों से बना देवदूत है…
“प्रेम”
अहं, राग, द्वेष, ईर्ष्या,
दर्प, घृणा का हवन है…
सद्भाव, सौहार्द, स्नेह, बुद्धि, प्रज्ञा, और विवेक, से निर्मित सृष्टि रूपी भवन है…