पुरुष प्रेम
“प्रेम”
भावना मात्र नहीं,
अनुभूति नहीं, संवेदना नहीं,
बल्कि एक सम्पूर्ण
विद्यमानता की पुनर्रचना है…
पुरुष जब, “स्त्री प्रेम” में होता है
तो वह संवेदना मात्र एक संबंध का नहीं,
बल्कि एक दिव्य यात्रा,
अलौकिक भ्रमण का होता है….
जहाँ अन्तर्मन
प्रवृत्ति, और मनोवृति के साथ
एकाकार हो जाता है…
जहाँ मिटने लगती हैं
समय और स्थान की सीमाएं…
शांत, निर्मल वादियाँ,
वृष्टि करते मेघ,
बहती हो कलकल करती जलधारा…
जहाँ कलकल का मधुर स्वर
मात्र ध्वनि नहीं,
बल्कि पुरुष के हृदय के,
अन्तर्मन में निर्झर बहने वाली हो प्रेम धारा…
प्रेम में मग्न, तल्लीन, अंतर्लीन, पुरुष,
उस अमृत, और मेघपुष्प की नाद में
अपने अंतर्मन की गति को पहचानता है…
संध्या की बेला
झींगुरों का मद्धिम स्वर,
मेंढकों की टर्र-टर्र
मानो प्रकृति की ओर से
प्रेम संगीत बन गई है…
तत्पश्चात आती है शीतल, अनातय पवन
आह…
एक ऐसा स्पर्श
जो किसी स्त्री की कोमल अंगुष्ठ,
की तरह उसके आनन को छूती है….
यह अनुभव दैहिक, या कायिक नहीं,
आत्मिक, ईश्वरीय होता है…
पुरुष इस क्षण
प्रेम का मात्र अनुभव नहीं करता,
बल्कि उसे जीता है
ऐसे क्षणों में, शब्द अपर्याप्त हो जाते हैं…
उसे अभिव्यक्त करने के लिए
कोई भाषा पर्याप्त नहीं होती,
यही वह प्रेम है
जिसमें अहंकार स्वयं को त्याग देता है…
क्रोध, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, अभिमान के
सम्पूर्ण कुल का होता है सर्वनाश…
और बचता है
पवित्र, निर्मल, स्वच्छ, विशुद्ध, निस्वार्थ प्रेम
यह प्रेम किसी वचन, और प्रतिज्ञा पर आधारित नहीं होता..
यह न मोल चाहता है, न प्रतिदान..
पुरुष अब स्वयं को नहीं,
केवल स्त्री के अस्तित्व को अनुभव करता है…
और “स्त्री”,
स्त्री इस प्रेम में मात्र
संगिनी, प्रेयसी, प्रियतमा, नहीं रह जाती;
वह बन जाती है एक प्रवाह…
स्त्री बन जाती वाहिनी जो समस्त कुल को सींचती है,
खुद को समर्पित कर देती है, पुरुष के लिए
वह ईश्वर की सजीव अभिव्यक्ति होती है
विशाल, विराट, वृहत, शांत, करुणामयी, ममतामयी…
स्त्री का यह प्रेम, यह समर्पण,
पुरुष को उसकी आत्मा तक ले जाता है…
पुरुष अब बाह्य सौंदर्य नहीं देखता;
वह स्त्री की अन्तर्मन में खोजता है:-
अपनी मुक्ति
और यही वह क्षण होता है
जब प्रेम एक सांसारिक भावना से उठकर एक पारलौकिक साधना
आलौकिक तपस्या,
आत्मिक अर्चना, आराधना,
उपासना, और सिद्धी बन जाता है
तब पुरुष स्त्री से प्रेम नहीं करता,
उस आराध्य स्त्री की करता है
अर्चना,आराधना,वन्दना
पुरुष स्वयं स्त्री
स्त्री स्वयं पुरुष
एक ओमकार
एकाकार