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13 Jun 2025 · 2 min read

कर्णगढ की माहारानी ⚜️रानी शिरोमणि⚔️

अंग्रेज़ी सासन की जाड़े हिलाने की उसने ठानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुम हुई आज़ादी की वह एक वीर कहानी थी,
भारत से फिरंगीयो को खदेडने की रानी शिरोमणि ने ठानी थी,

चमक उठी थी जो बंगाल में, वह तलवार पुरानी थी,
सन 1798 के विद्रोह की, वह एक अमर कहानी थी,
मिदनापुर के लोगों से, हमने सुनी वीरतापूर्ण कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह बंगाल की माहारानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार थी,
सदगोपो के घर में गूंजी , अहिरानी की किलकारी थी,
यादव कुल की शान बढाई, श्री कृष्ण की बो वंशज थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

बंगाल-कुल-देवी उसकी भी आराध्य माँ महामाया दुर्गा थी,
मिदनापुर के लोगों से, हमने सुनी वीरतापूर्ण कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह कर्णगढ की माहारानी थी॥

हुई अजीत सिहा की रानी शिरोमणि के साथ सगाई कर्णगढ में,
ब्याह हुआ रानी बन आई थी शिरोमणि कर्णगढ में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई थी कर्णगढ में,
सुघट सदगोपो की विरुदावलि-सी वह आयी थी कर्णगढ में।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजा जी रानी शोक-समानी थी,
मिदनापुर के लोगों से हमने सुनी वीरतापूर्ण कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो कर्णगढ की माहारानी थी॥

बुझा दीप कर्णगढ का तब क्लार्क मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य कर्णगढ आया।

रानी रक्षक बनी, बनी रानी शिरोमणि अब महरानी थी, मिदनापुर के लोगों से, हमने सुनी वीरतापूर्ण कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह कर्णगढ की माहारानी थी॥

फिरंगीयो को खदेडने को, रानी शिरोमणि ने दहाड़ लगाई थी,
किसानों संग मिल उसने, विद्रोह की चिगारी पनपाई थी,
रानी शिरोमणि ने रण-चण्डी बन, उसको ललकार लगाई थी,
रानी का कपाली रूप देख, क्लार्क का मन शंका आई थी,

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह कर्णगढ की माहारानी थी॥

गुरिल्ला युद्ध में माहिर रानी, युद्ध में घेर ली गाई थी,
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल चौरासी की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह कर्णगढ की माहारानी थी॥

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लेखिका ~ { 𝐘𝐀𝐃𝐀𝐕𝐈 } ईशा सिंह यदुवंशी 🚩
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