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10 May 2025 · 1 min read

दोहावली

दोहा

कागज कोरा हीं रहा, स्याही लगा न हाथ।
कबीर सम रचना किया, कुछ शब्दों के साथ।।

चलंत दूरभाष सदा, करता है सहयोग।
रचना झट-पट कर रहे, जैसे लगता रोग।।

चार पंक्तियांँ गद्य की, कभी न लिखता शुद्ध।
लेकिन रहता भाव यह, मैं हूँ बड़ा प्रबुद्ध।।

लिखता दोहा मैं सदा, जैसे तैसे रोज।
फिर भी आता है कहाँ, कबीर वाला ओज।।

जितना हीं मैं लिख रहा, लगे अधूरा ज्ञान।
इससे मिलता मान भी, मिले कभी अपमान।।

दोहा मात्रिक छंद है, गेय इसे लें जान।
पर शब्दों को जोड़कर, रखते भाव महान।।

कलमकार है वह बड़ा, जो मन लेता जीत।
छंद रचें चाहें नहीं, रखें भाव से प्रीत।।

पाठक अपने आप को, मान रहा अल्पज्ञ।
ढूंढ रहा उस शख्स को, जिसे कहें सर्वज्ञ।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

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