*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: संस्कृत एवं हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक
लेखक: डॉ गीता मिश्रा गीत संपर्क: नंदपुर, पोस्ट ऑफिस कठघरिया, हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड 263139
मोबाइल 817188 1903
प्रकाशक: इथोस सर्विसेज, कपिल कॉम्पलेक्स, कालाढूंगी रोड, हल्द्वानी, जिला नैनीताल, उत्तराखंड
मोबाइल 9719 000 998
प्रकाशन का वर्ष: मार्च 2025 मूल्य: ₹300
प्रतियॉं: 200
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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संस्कृत एवं हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक
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डॉ गीता मिश्रा गीत जी ने 1985 में ‘हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक’ विषय पर शोध प्रबंध लिखा था। इस पर उन्हें पी-एच.डी की उपाधि प्राप्त हुई थी। इसी शोध प्रबंध को थोड़ा विस्तार देकर ‘संस्कृत और हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक’ शीर्षक से वर्ष 2025 में आपने पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है।
सदैव से रामकथा लेखकों और कवियों को कुछ लिखने के लिए आकृष्ट करती रही है। रामकथा की कथावस्तु इतनी विस्तृत और वैविध्यपूर्ण है कि उसमें कुछ न कुछ मनोनुकूल प्रसंग कवियों को मिलते रहे हैं। एक स्थान पर इन प्रवृत्तियों को सहेज कर अध्ययन करने का कठिन कार्य डॉक्टर गीता मिश्रा गीत जी ने किया है
संस्कृत साहित्य की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। डॉक्टर गीता मिश्रा गीत ने अपनी पुस्तक में जहॉं एक ओर इस बात को रेखांकित किया है कि वेदों में साफ-साफ तौर पर तो रामकथा अनुपस्थित है, वहीं दूसरी ओर इतिहासकार चिंतामणि विनायक वैद्यक के मत को उद्धृत करते हुए यह भी लिखा है कि “ऋग्वेद में जिन राम का उल्लेख मिलता है वे वास्तव में दाशरथि रामचंद्र ही थे।” (पृष्ष्ठ 5)
संस्कृत साहित्य के अंतर्गत विदुषी लेखिका ने श्रीमद्भागवत् पुराण में नौवें स्कंध में भगवान् राम के चरित्र के वर्णन का उल्लेख किया है। (पृष्ठ 31)
संस्कृत साहित्य के अंतर्गत ही लेखिका ने भुशुंडि रामायण की भी समीक्षा की है तथा इसे वाल्मीकि रामायण के पश्चात सबसे पुरानी रामायण माना है। (पृष्ठ 35)
इसके अतिरिक्त अध्यात्म रामायण की भी समीक्षा विदुषी लेखिका ने की है। कालिदास के रघुवंश महाकाव्य आदि अनेक महत्वपूर्ण संस्कृत राम कथाओं का विश्लेषण पुस्तक में किया गया है।
हिंदी साहित्य में सूरदास जी द्वारा लिखित सूरसागर, आचार्य केशवदास की रामचंद्रिका, महाकवि पद्माकर का राम-रसायन तथा मैथिली शरण गुप्त द्वारा लिखित साकेत और पंचवटी काव्य की रामकथा पर भी पुस्तक में प्रकाश पड़ता है।
साकेत की समीक्षा करते हुए विदुषी लेखिका ने इसे रामकथा ही माना है, भले ही इसमें उर्मिला की कथा हो। लेखिका के अनुसार लक्ष्मण एवं उर्मिला विशाल राम साहित्य के ही अभिन्न एवं अत्यावश्यक उपकरण हैं । (पृष्ठ 169)
हिंदी साहित्य में महाकवि हरिऔध द्वारा लिखित वैदेही वनवास महाकाव्य तथा डॉक्टर बलदेव प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित महाकाव्य रामराज्य की भी समीक्षा विदुषी लेखिका ने अपनी पुस्तक में की है। शूर्पणखा से संबंधित प्रसंग पंचवटी खंडकाव्य जो मैथिली शरण गुप्त द्वारा लिखित है, उसको भी राम कथा के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण कृति के रूप में विदुषी लेखिका ने स्वीकार किया है।
रामायण के विविध पात्रों के आधार पर भी अनेक पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित हुई हैं। इनका गहरा अध्ययन विदुषी लेखिका के शोध कार्य में मिलता है। रावण को केंद्र में रखकर हरदयालु सिंह के महाकाव्य रावण के बारे में भी अच्छी टिप्पणी शोध पुस्तक में की गई है। शिव सिंह सरोज का लक्ष्मण महाकाव्य भी लक्ष्मण को केंद्र में रखकर लिखी गई कृति है। पुस्तक में इनका विश्लेषण भी है (पृष्ठ 223)
हिंदी साहित्य में रामकथा से प्रेरित होकर छोटे-छोटे प्रश्नों पर भी राम कथा साहित्य लिखा गया है। शोध प्रबंध में नरेश मेहता द्वारा लिखित खंडकाव्य संशय की एक रात इसी प्रकार की कृति है। इसमें इस प्रश्न पर आत्म मंथन है कि युद्ध किया जाए अथवा नहीं ? इस महत्वपूर्ण पुस्तक को भी शोध कार्य के दायरे में लिया गया है। (पृष्ठ 246)
कुछ चुभते हुए प्रश्न लेकर भी साहित्यिक कृतियॉं राम कथा के रूप में सामने आई हैं । इन कृतियों का अध्ययन भी शोध कार्य में गहराई से किया गया है। डॉ जगदीश गुप्त का लघु काव्य शंबूक इसी श्रेणी में आता है। (पृष्ठ 251) रूपनारायण चतुर्वेदी ने भरत-भावना नामक खंडकाव्य में भरत के नायकत्व पर जोर दिया है। शोध प्रबंध में विद्वान लेखिका ने इस ओर पाठकों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करने में सफलता पाई है। निराला की राम की शक्ति पूजा काव्य की भी राम कथा काव्य के रूप में पुस्तक में समीक्षा देखने को मिलती है। (पृष्ठ 288) जटायु की भूमिका को आधुनिक प्रतीकों के माध्यम से यक्ष प्रश्न नामक खंडकाव्य में कुमार प्रशांत ने जिस खूबी के साथ प्रस्तुत किया, उस पर भी विदुषी लेखिका ने कलम चलाई है। (पृष्ठ 302)
पुस्तक का एक महत्वपूर्ण आयाम डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा शुरू किए गए रामायण मेले के संबंध में एक सुगठित लेख पाठकों के सामने प्रस्तुत करना रहा है। इस लेख को तैयार करने में प्रोफेसर बाबूलाल गर्ग की संस्मरणात्मक पुस्तक रामायणी मेला और लोहिया पुस्तक को स्थान-स्थान पर विदुषी लेखिका ने उद्धृत किया है। लोहिया जी की परिकल्पना रामायण मेले के मूल में जातिवाद और छुआछूत समाप्त करके समरस समाज के निर्माण के विशुद्ध सांस्कृतिक लक्ष्य को प्राप्त करना था। इसमें वह दलगत राजनीति के प्रवेश के बिलकुल खिलाफ थे। रामायण मेले को सच्चे और सही संदर्भ में अपनी शोध पुस्तक के माध्यम से पाठकों के सामने रखने के लिए लेखिका बधाई की पात्र हैं ।(पृष्ठ 313)
डॉ गीता मिश्रा गीत का जन्म 6 मई 1955 को बागेश्वर में हुआ। आपकी उच्च शिक्षा मोतीराम बाबूराम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हल्द्वानी से हुई। इसी महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रभा पंत की आत्मीयता से भरी सुंदर भूमिका पुस्तक में है। श्रीमती डॉक्टर गीता मिश्रा गीत जी ने अपना शोध प्रबंध जिन डॉक्टर महेश मधुकर भट्ट जी के निर्देशन में किया था, वह हिंदी के महान साहित्यकार बालकृष्ण भट्ट के परपोते हैं। ऐसा अद्भुत सौभाग्य साहित्यिक दृष्टि से दुर्लभ ही कहा जाएगा। मधुकर भट्ट जी का हस्तलिखित आशीष दिनांक 10 जनवरी 2025 भी पुस्तक की शोभा बढ़ा रहा है। केंद्रीय विद्यालय में 27 वर्ष तक शिक्षक के रूप में कार्य करने के उपरांत डॉक्टर गीता मिश्रा गीत जी वर्तमान में साहित्य-साधना को समर्पित हैं। राम कथा में आपकी रुचि और गहन अध्ययन के लिए आप वास्तव में बधाई की पात्र हैं।