रिश्तों की बाजार में, अर्थ बना भगवान।
रिश्तों की बाजार में, अर्थ बना भगवान।
भाव लिए संकीर्णता, खोजे प्रेम महान।।
ताक नहीं उर में रहें, हाथ लिए सब चाक।
खींच रहे हैं लीक बस,समझे खुद को दाक।।
संजय निराला
रिश्तों की बाजार में, अर्थ बना भगवान।
भाव लिए संकीर्णता, खोजे प्रेम महान।।
ताक नहीं उर में रहें, हाथ लिए सब चाक।
खींच रहे हैं लीक बस,समझे खुद को दाक।।
संजय निराला