भगवान महावीर। ~ रविकेश झा।

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और पूर्ण स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान में प्रवेश कर रहे होंगे। ध्यान ही एक मात्र ऐसा उपकरण है जो हमें अपने भीतर से जुड़ने पर ज़ोर देता है और पूर्ण शांति अहिंसा करुणा और प्रेम के ओर ले जाने में पूर्ण मदद करता है। अगर हम खोजी हो तो नहीं तो सब बेकार लगेगा क्योंकि हम बस बेहतर होने में लगे रहते हैं हम पद नाम प्रतिष्ठा धन के बारे में सोचते हैं सब सोचते हैं विचार करते हैं तो हम क्यों नहीं। सब भीड़ के तरफ चलता है तो हम क्यों नहीं कोई एक होता है कोई एक अकेला व्यक्ति जो साहस जुटाता है भीतर जाने के लिए द्वार खोजने लगता है उसे व्यर्थ दिखाई देने लगता है भौतिक में जब वह होश के साथ जीवन को देखता है तब सब को नहीं होता ऐसा सब होश के साथ नहीं जीते हैं बल्कि मूर्छा और बेहोशी को अपना मित्र मान के चलते हैं और कोई आंख वाला व्यक्ति मिल जाए तो उसके साथ घृणा क्रोध करने लगते हैं ताकि हमारा भ्रम और धर्म नष्ट ना हो, ऐसा क्यों है हमारा धर्म जो हमें डर लगता है कि हमसे छीन लिया जाएगा, धर्म पूर्ण विस्तार क्यों नहीं है सबको जगह क्यों नहीं मिलता सब बातों को तर्क अनुभव और हृदय तक पूर्ण बात क्यों नहीं पहुंचता। हम चिल्लाने क्यों लगते हैं हम बुद्ध के साथ क्या किए या कृष्ण के तरह या तो विचार को नष्ट करने में लग गए या अपना अपना अर्थ निकालने में। कृष्ण कह रहे हैं कि युद्ध करो तो हम युद्ध करने लग गए बिना जाने कि युद्ध होता क्या है और किसको क्या मिलेगा बस अर्थ निकालने में लग जाते हैं कृष्ण शांति के बात कर रहे हैं तो शांति को भी पकड़ लिए जहां जो हमारा अर्थ निकाल जाए हम तुरंत मानना शुरू कर देते हैं कृष्ण जी को समझना मुश्किल है वह क्या करेंगे और क्या कहेंगे दोनों वर्तमान पर निर्भर है देखते हो वह कहते हैं कि हथियार नहीं उठाएंगे उठा भी लेते हैं वह पूर्ण राजनीतिक है उनका व्यक्तत्व को आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि वह क्या करेंगे नेक्स्ट स्टेप क्या होगा। लेकिन हम बस अपना वासना को पूरा करने के लिए अर्थ निकाल लेते हैं चाहे वह भगवान कृष्ण हो या बुद्ध या महावीर। हमारा ध्यान रहता है बस कामना पूरा करने में अर्थ को बिना समझे बिना दौड़ लगाने लगते हैं और अंत तक हाथ कुछ नहीं लगता मन कहता है और हो जाए कुछ और हो। जो हमें ज्ञान ध्यान और दर्शन की बात करे तो हमें बस सुनने में अच्छा लगता है प्रैक्टिकल नहीं बस थ्योरी पढ़ने में उत्सुक होते हैं और सामाजिक भय के कारण हम प्रैक्टिकल नहीं कर पाते बोल नहीं पाते मन में बस विचार चलता रहता है, शरीर से मन तक तो पहुंच जाते हैं लेकिन मन से ऊपर नहीं उठ पाते हम कुछ कुछ सोचते हैं बुद्धि का उपयोग करते हैं विचार अच्छा लगने लगता है सोचते हैं सबके भले की बात करते हैं हम मन से बात मानने लगते हैं बस शरीर साथ नहीं देता धर्म साथ नहीं देता। क्योंकि हमारा धर्म पूर्ण विस्तार नहीं है साहब हम सबको जगह नहीं दे पाते क्रोध घृणा के कारण हम मन तक सीमित हो जाते हैं, और कुछ शरीर से भी करते हैं भौतिक भी ताकि अन्य धर्म के लोग भी उन्हें नेक और करुणावान प्रेमी समझें लेकिन कुछ समझे वह अपने समाज में भौतिक नहीं तो सूक्ष्म रूप से जगह दे दूसरे लोग के तरह हमें न समझा जाए हमें सबको लेकर चलना है ईश्वर एक है कुछ बात पढ़ के रट लेते हैं शायरी पढ़ लेते हैं कवि जी सबको सुन कर डेटा उठा लेते हैं। और ये भी सोचते रहते हैं कि हमने करुणा किया और साथ में ये भी कि हम बुद्धिमान है कामना हुआ कुछ ताकि नाम मिले प्रतिष्ठा मिले ये धर्म में या वह धर्म में कुछ लोग गलत और देशद्रोही समझेंगे तो कुछ लोग तो देशप्रेमी या धर्मप्रेमी भी समझेंगे सिक्का के दो पहलू के तरह सुख दुख के तरह। हम इसीलिए अंधकार से परे नहीं उठ पाते कुछ हो कामना ये सबके मन में चलता रहता है। शरीर से मन तक हम कुछ विचार या भय से पहुंच सकते हैं कुछ लेकिन शरीर से मन और मन से आत्मा तक पूर्ण रूप से ध्यान के सूत्र से ही पहुंचा जा सकता है फिर हम अटकेंगे नहीं कहीं फिर भय वासना या कामना के लिए बस नहीं जिएंगे निष्काम में रूपांतरण हो जायेंगे अगर पूर्ण खोजी हुए तो स्त्री या भोग में फंस गए तो फिर दिक्कत है या तो पूर्ण भोग कर लो ध्यान के साथ घटने दो या ध्यान के मदद से अंदर की परतें को खोलो, दो रास्ता है या शरीर के अनुभव से शुरू करो सभी इन्द्रियां का प्रयोग करके, सभी का रस ले कर ध्यान के साथ घटने दो, या ध्यान के माध्यम से भाव विचार को देखने से बस देखने से बैठने से सिर्फ बस विचार भाव को स्वीकार करो और निरंतर उसे ध्यान के साथ देखो जड़ और अंत का पता लगाओ, विचार उठता कहां से है भावना का घर कहां है कल्पना हम कैसे करते हैं विचार कैसे उठता है ध्यान केंद्रित करना होगा। आज हम बात कर रहे हैं भगवान महावीर की बुद्ध पुरुष महापुरुष मिलना मुश्किल है इनके जैसा ध्यानवान पूर्ण शांत और महान वैज्ञानिक जो हर तथ्यों जैसे हम लोग के सामने रखें है वह शब्दों में कहना मुश्किल है। सूत्रों को सूक्ष्म और भौतिक दोनों जगह भीतर और बाहर दोनों जगह सेतु बांधने का काम किए हैं। इनके जैसा महान दार्शनिक आध्यात्मिक गुरु मिलना मुश्किल है लेकिन हम लोग उन्हें नंगा पागल मूर्ख लुच्चा समझने लगे उन्हें पागल मूर्ख का दर्जा देने लगे अहंकार और अंधकार के कारण हम सब भगवान महावीर को नहीं जान पाए मूर्छा और बेहोशी के चस्मा के कारण हम आकाश को नहीं देख पाए उन्हें बस हल्का में लिए। उनका ध्यान सूत्र हो या उनका अमूल्य धरोहर के रूप में जो उनका विचार है वह सबको एक साथ जोड़ने का काम करती है अगर होश के साथ हम पढ़ें तो नहीं तो बस लगेगा कि यहां बस मूर्खता की बात हो रही है भौतिक से दूर करने की बात हो रही है त्याग की बस बात हो रही है घर छोड़ने की बात हो रही है, पागल बनाने की बात हो रही है। पागल ही उन्हें समझ सकता है ध्यानी ही उन्हें रस ले सकता है उनके जैसा विचारक और गहराई में जाने वाले सातों शरीर पार करने वाले बुद्ध पुरुष मिलना मुश्किल है साहब।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में भगवान महावीर को स्थान दिया गया है और उन्हें अंतिम तीर्थंकर के रूप में भी देखा जाता है वह अंतिम तीर्थंकर माने जाते हैं वह भी बस जैन धर्म के द्वारा तीर्थंकर का मान्यता प्राप्त है जो जैन और धर्म में विश्वास करते हैं उनके लिए धर्मगुरु हुए और जो आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन को देखते हैं और जीते हैं उनके लिए आध्यात्मिक गुरु और बुद्ध पुरुष हुए। ओशो भी जैन धर्म से शुरू में जुड़े थे उनका जन्म भी जैन परिवार में हुआ था, लेकिन जब वह पूर्ण और बुद्ध पुरुष हुए तो भगवान महावीर के तरह वह भी मानना छोड़ दिया क्योंकि वह सब कुछ जान लिए ध्यान के माध्यम से सब कुछ से परिचित हो गए थे, और आध्यात्मिक जीवन में एक ऐसा समय आता है जब सब कुछ छोड़ना पड़ता उस अमृत के लिए बाहरी और भौतिक से परे जाना होता है विचार शब्द है भौतिक भौतिक में अटके रहोगे तो ब्रह्म से कैसे परिचित होगे साहब। इसीलिए धर्म को भी छोड़ना पड़ता है ताकि कुछ पकड़ने को न रह जाए वह अज्ञात जो है वह सामने आ जाए कचरा बाहर होगा तभी अमृत दिखाई देगा परमात्मा दिखाई देंगे। जो बाहर कुछ पकड़ के रखेगा वह भीतर कैसे आएगा वह तो बाहर के लिए अंदर भी बेचैन होगा, उत्तेजित होता रहेगा जैसे कोई कह दे भीतर रहो लेकिन कोई स्त्री या अन्य भोग का इच्छा न हो मन में, वह लाख कोशिश करेगा भीतर स्थिर नहीं होगा उसे लगेगा वह हमसे छूट न जाए रह न जाए कब वह काम पूरा कर लू कब भोग हो, इसीलिए या तो भोग में प्रवेश करो या बस ध्यान के साथ रहो, मन को देखते रहो, आ कहां से रहा है लेकिन ये धैर्य और विवेक को जो फॉलो करते हैं उनके लिए सरल हो सकता है बाकी लोगों को नहीं उसके लिए लगन चाहिए संघर्ष चाहिए सब के बस का बात नहीं। भगवान महावीर को उनकी गहन विश्लेषण और शिक्षाओं के लिए सम्मानित किया जाता है, जो अहिंसा, सत्य और आध्यात्मिक मुक्ति पर जोर देती हैं। उनका जीवन और दर्शन लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं, आंतरिक शांति और पूर्ण ज्ञान का मार्ग प्रदान करते हैं। 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में वर्धमान के रूप में जन्मे, वे भगवान पार्श्वनाथ के आध्यात्मिक और धार्मिक उत्तराधिकारी थे। उनके जीवन और शिक्षाओं ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता पर एक अमिट छाप छोड़ी है, जिसमें अहिंसा और सत्य पर जोर दिया गया है। महावीर की राजकुमार से आध्यात्मिक नेता बनने की यात्रा गहन आत्मनिरीक्षण और आत्म साक्षात्कार से जुड़ी थी। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक संपत्ति का त्याग कर दिया, और स्वयं को केवल ज्ञान या सर्वज्ञता प्राप्त करने के लिए समर्पित कर दिया। बिहार के कुंडग्राम में इक्ष्वाकु वंश के शाही परिवार में जन्मे वर्धमान को महानता के नियत किया गया था, उनके माता पिता, राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला ने उन्हें विलासितापूर्ण जीवन प्रदान किया उन्हें हर सुख दिया गया ताकि वह खुश रहे, हालांकि युवा वर्धमान कम उम्र से ही आधात्मिकता की और आकर्षित थे। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश और प्राप्ति के लिए अपने शाही जीवन को त्यागने का निर्णय लिया। अगले 12 वर्षों तक उन्होंने गहन ध्यान और तपस्या की। अपने आध्यात्मिक मार्ग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें केवल पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया, जिससे वे तीर्थांकन बन गए एक आध्यात्मिक शिक्षक जो दूसरों को सांसारिक दायरे से पार करके आध्यात्मिक मुक्ति पाने में पूर्ण मदद करता है। वह वर्धमान से महावीर हो गए महावीर का अर्थ होता है वीर जिसका ऊर्जा अब चैतन्य हो गया अब वह पूर्ण हो गए पूर्ण योद्धा हो गए सभी चक्र से परे हो गए आकाश को स्पर्श कर लिए वीर योद्धा हो गए, जो हिंसा और अहिंसा से परे हो गए, उनका अब मुकाबला कोई नहीं कर सकता वह अब वीर हो गए एक हो गए सब कुछ जान लिए। महावीर के दर्शन का केंद्र अहिंसा की अवधारणा थी वह चुने थे वह मान नहीं लिए थे कोई कह नहीं रहा था उधार के विचार पर नहीं खड़े थे अपना अनुभव से जान कर मान कर नहीं उधार का ज्ञान नहीं, अपना अनुभव कभी मन को विचलित नहीं करता है दूसरे के अनुभव पर हम कुछ देर के लिए खड़े हो सकते हैं फिर लड़ना शुरू कर देंगे कामना के बोझ के तले दब जायेंगे। महावीर जी के दर्शन का मुख्य आकर्षण अहिंसा करुणा शांति पर केंद्रित है, जो किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान पहुंचाने से पूरी तरह परहेज़ करने की वकालत करती है। यह सिद्धांत शारीरिक हिंसा से आगे बढ़कर विचारों और शब्दों को शामिल करता है, जो शांति और सद्भाव के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। आज की दुनिया में, जहां संघर्ष और आक्रामकता प्रचलित है, महावीर का अहिंसा का संदेश महत्वपूर्ण प्रासंगिकता रखता है।
अहिंसा का अभ्यास करके, व्यक्ति अधिक शांतिपूर्ण समाज में योगदान दे सकते हैं, शत्रुता को कम कर सकते हैं और आपसी सम्मान को बढ़ावा दे सकते हैं। महावीर ने सत्याग्रह या सत्यता के महत्व पर भी जोर दिया यह सिद्धांत जीवन के सभी पहलुओं में ईमानदारी से बोलने और कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। सत्यनिष्ठा को अपनाकर हम अपने रिश्तों में प्रेम और पारदर्शिता का निर्माण कर सकते हैं जिससे एक अधिक जुड़ा हुआ और एकजुट समुदाय विकसित होता है। उनका हर ध्यान सूत्र को अगर आप ध्यान के साथ सुनेंगे या पढ़ेंगे आप रूपांतरण होने लगेंगे। भगवान महावीर की शिक्षाओं में ध्यान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो आत्म साक्षात्कार और आध्यात्मिक जागृति के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है। ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति स्वयं और अपने आस पास की दुनिया के बारे में गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आंतरिक शांति और दुख से मुक्ति मिलती है अगर वह अभ्यास करे तो नहीं तो बस मूर्खता और क्रोध घृणा ही हाथ लगेगा और अंत में बस दुःख। हमारी तेज़ तर्रार आधुनिक दुनिया में, भगवान महावीर की शिक्षाएं कालातीत ज्ञान प्रदान करती है जो हमें अधिक सार्थक और पूर्ण जीवन की ओर मार्गदर्शन करती हैं। सत्यनिष्ठा के सिद्धांतों को अपनी दैनिक दिनचर्या में एकीकृत करके, हम एक अधिक दयालु और न्यायपूर्ण समाज में योगदान दे सकते हैं। जब हम महावीर की शिक्षाओं पर विचार करते हैं, तो हमें सच्ची खुशी और आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने में आत्मनिरीक्षण और ध्यान की शक्ति की याद आती है। उनका संदेश हमें भौतिक लक्ष्यों से परे देखने और प्रेम, शांति और समझ पर आधारित जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। भगवान महावीर की शिक्षाएं अहिंसा सत्य अपरिग्रह ब्रह्मचर्य ( पवित्रता ) और अनेकांतवाद ( एकाधिक दृष्टिकोण) के सिद्धांतों पर केंद्रित हैं। ये सिद्धांत जैन नैतिकता का मूल हैं और दुनिया भर में जैनियों द्वारा इनका पालन किया जाता है। अहिंसा महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च कर्तव्य के रूप में महत्व दिया। उन्होंने सिखाया कि किसी को भी विचारों, या शब्दों या कार्यों से किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। सत्य सत्यनिष्ठा एक और प्रमुख सिद्धांत था, महावीर ने जीवन के हर पहलू में ईमानदारी की वकालत की। अपरिग्रह, का सिद्धांत व्यक्ति को भौतिकवादी इच्छाओं से अलग होने का आग्रह करता है। जैन धर्म पर प्रभाव है। उनकी शिक्षाओं ने भारत में एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा की नींव रखी। जैन भिक्षु और उनके शिष्य उनके द्वारा बताए गए सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हैं, जिसका उद्देश्य जन्म और मृत्यु चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है। दुनिया भर में जैन समुदायों द्वारा प्रदर्शित अनुशासन और भक्ति का श्रेय महावीर की शिक्षाओं को दिया जा सकता है। करुणा और नैतिक जीवन पर उनका जोर लाखों लोगों को प्रेरित करता है। आज उनकी शिक्षा की प्रासंगिताकता आज की तेज गति वाली दुनिया में, महावीर की शिक्षाएं आंतरिक शांति और नैतिक जीवन जीने का मार्ग प्रदान करती हैं। संस्कृतियों और करुणा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। अपरिग्रह और अनेकांतावाद के सिद्धांत संधारणीय जीवन और विविध दृष्टिकोणों की स्वीकृति को प्रोत्साहित करते हैं, जो एक वैश्वीकृत समाज में सह अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। भगवान महावीर का जीवन और उनकी शिक्षाएं आध्यात्मिकता और नैतिक जीवन को गहरी समझ चाहने वालों के लिए मार्ग प्रशस्त करती रहती हैं। अहिंसा और सत्य का उनका संदेश स्थायि महत्व रखता है, जो आज की दुनिया में सामंजस्यपूर्ण तरीके से जीने के लिए कालातीत ज्ञान प्रदान करता है अगर आप ग्रहण करने के लिए त्यार है तो नहीं तो बस ये सब भौतिक रह जायेगा बस भौतिक शब्द से परे जाना होगा तभी हम भगवान महावीर को पूर्ण रूप से जानेंगे और पूर्ण आनंदित भी होंगे। हम अक्सर दुनिया को झुकाने में लगे हुए हैं हम सोचते हैं हम बस बुद्धिमान है और बाकी मूर्ख है। इसीलिए ध्यान के अभ्यास से हम पूर्ण संतुष्ट होंगे और सार्थक जीवन जीने लगेंगे। अगले लेख में उनके पूर्ण विचार और ध्यान सूत्र से अवगत होंगे।
इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए आभार।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️,