गीतिका

गीतिका
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नहीं गर्मियां ये हमेशा चुभेगी।
बहुत खूब ठंडी हवाएं बहेगी।
जरा हाथ आगे बढ़ा दीजिए अब।
मुहब्बत खिलेगी निखरने लगेगी।
कभी काम की बात हो मन लगाकर।
कहानी बहुत खूबसूरत बनेगी।
कहीं द्वेष की व्यर्थ बातें न करना।
सही वक्त पर मित्रता भी निभेगी।
निशा अब विदा हो रही है तमस की।
सुबह देखना हर कली भी खिलेगी।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य