“वह कल था”

बीच नींद खुल गई,हो गया टूट कर चकनाचूर सपना है ।
खुली आंख तो लगा,कि जैसे,वो बीते कल का साया है।।
आज सुनहरा सवेरा,आंखों में नया स्वप्न सजाने आया है।
रात रागनी देख,आंखों ने पलकों का समियाना बनाया है।।
छट चुकी हर ओर उदासी,नए उल्लास का हुआ बसेरा है।
रात कादम्बरी महक रही,हर ओर चमकते सितारों का पहरा है।।
रोज़ घटता-बढ़ता मेरा साया,चांद ने यह नरमी से गुनगुनाया है।
फिर भी चांदनी मतवाली ने, इस पर ना कोई शोर मचायाहै।।
आखिर हृदय से उठती पीड़ा ने, इतना ही समझाया है।
कट जाएगा वक़्त यह भी,आंखों ने विश्वास का दीप जलाया है।।
वो कल था जो अब बीत चुका,नये सिरे से गीत जीवन को गाना है।
हर कांटा पग से निकाल कर,राहों में आशा का फूल बिछाना है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”