हाथों में सोने की चूड़ी

हाथों में सोने की चूड़ी, छल्ला चाहिए
बेखटके हम पहने वो मुहल्ला चाहिए
पैरों में घूँघरू हो
सइयाँ भी गबरू हो
जो हो दीवाना मेरा
मेरा ही मजनूँ हो
लट्टू जो मेरा हो
टट्टू जो मेरा हो
नाचे संग–संग जो वो, नचल्ला चाहिए
बेखटके हम नाचें, वो मुहल्ला चाहिए
रेशम का लहँगा हो
मखमल की चोली हो
मलमल का क़ुर्ता पहने
ऐसा हमजोली हो
व्हिस्की का ग्लास हो
अपना भी क्लास हो
सिगरेट के धूएँ का वो, छल्ला चाहिए
बेखटके कश मारें, वो मुहल्ला चाहिए
भौंहें कमानी मेरी
आँखें ज़लानी मेरी
रह–रह सलामी मारे
क़ातिल जवानी मेरी
क़ज़रा भी लहके मेरा
गज़रा भी महके मेरा
बुर्क़ा, घूँघट न मुझको, पल्ला चाहिए
बेखटके हम घूमें, वो मुहल्ला चाहिए
घर हो सज़ीला मेरा
आँगन रंगीला मेरा
बाबू–सोना सा हो
छैल–छबीला मेरा
सोसाइटी पॉश हो
टेबल पे ताश हो
मम्मी का बेटा न वो, लल्ला चाहिए
बेखटके हम खेलें, वो मुहल्ला चाहिए
–कुँवर सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ✍️
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित