ग़ज़ल डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी

दर्द हो दिल में कहां प्यार का मंजर आए।
याद वो आए तो अश्कों का समंदर आए।
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तू मेरे साथ रहे साथ चले साथ उड़े।
काश की ओज पे मेरा भी मुकद्दर आए।
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मैं कभी राह में गुमराह नहीं हो सकता।
शर्त है राह दिखाने वो कलंदर आए।
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मैंने सच का जो जमाने को दिखाया शीशा।
आईना तोड़ने हर सिम्त से पत्थर आए।
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जितने थे दोस्त वही जान के दुश्मन निकले।
कत्ल करने को मेरी वो लिए खंजर आए।
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मैं वफ़ा ढूंढता रहता हूं परिंदों जैसा।
शाम ढलते ही सभी लौट के जो घर आए।