अधूरी विदाई

सर्व श्रेष्ठ संबंध मित्रता होता हैं, रत्नेश अपने मित्र उर्मिला के घर गया हुआ था, रात्रि विश्राम कर सो गया, सुबह चाय नाश्ता किया इतना स्नेह मान सम्मान व्यक्ति ससुराल में भी नहीं पाएगा, जितना रत्नेश को उर्मिला के यहाँ पर मिला, नाश्ता कर वह अपने घर जाने हेतु तैयार होता हैं।
परिवारिक बंधनों में बंधी उर्मिला कर्त्तव्यता की परिधि में रहते हुए अपने जीवन को व्यतीत करती हैं, रत्नेश उर्मिला के दूर के मामी का भांजा हैं, जो बहुत ही चरित्रवान सभ्य परिवार से आदर्शवान, स्वाभिमान हेतु अपने आप को शूली पर चढ़ा देने वाला हैं।
उर्मिला एक चरित्रवान स्त्री हैं जिसकी शादी हो गई हैं, जो अपने परिवार में स्नेह भाव कर्त्तव्य पूर्ण बंधन से बंधकर बंधनों को निष्ठा पूर्वक निभा रहीं हैं, इतनी कर्मठ – शील चरित्रवान कर्त्तव्य पूर्ण माली जैसा कुनबे को सुसज्जित करने वाली श्रृंगार पूर्ण सुशोभित हैं मानों एक स्वर्ग सा उपवन का निर्माण किया हो।
रत्नेश भोजन कर उर्मिला के पिता जी के घर से चला तो उसे पूर्ण विश्वास था, कि उर्मिला रोटी तो बना रहीं हैं, लेकिन उसे छोड़ने वह बाहर दरवाजे पर जरूर आएगी।
उर्मिला शादी से पूर्व उसे अपने घर के दरवाजे तक विदा करने आती थीं, लेकिन शादी के बाद उसके मन में लज्जा और व्यक्तिगत भावनाओं का अंतः द्वंद्व चल रहा था, जिससे वह निर्णय न ले सकी कि वह रत्नेश को विदा करें या ना करें, अंतः इन्हीं अन्तर द्वंद्व से लड़ती रहीं और वह रत्नेश को दरवाजे तक विदा करने ना जा सकी ।
रत्नेश को यह अधूरी विदाई कुछ समझ में ना आई, वह यहीं बात सोचता हुआ, अपने घर चला गया, रत्नेश के लिए यह अधूरी विदाई एक पहेली बन कर रह गया…।