पुरुष और स्त्री की एक अधूरी तलाश – राकेश यादव गोल्डी की कलम से

हम सबके भीतर एक अधूरापन होता है। एक पुरुष के अंदर स्त्री होती है, और एक स्त्री के अंदर एक पुरुष। ये दोनों पूरी ज़िंदगी एक-दूसरे को तलाशते रहते हैं, लेकिन जब मिलते हैं, तो हमेशा अधूरे ही मिलते हैं। यह अधूरापन ही जीवन की सच्चाई है, और शायद यही हमें आगे बढ़ने की ताकत भी देता है।
हमारे अंदर का स्त्री-पुरुष कौन है?
हर इंसान में दो पहलू होते हैं—कोमलता और कठोरता, तर्क और भावना, शक्ति और संवेदनशीलता। अक्सर हम इन्हें पुरुषत्व और स्त्रीत्व के नाम से पहचानते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि ये दोनों गुण हर इंसान में मौजूद होते हैं।
– जब कोई पुरुष किसी की मदद करता है, किसी को स्नेह से समझाता है, किसी के दर्द में रोता है, तो यह उसके अंदर की स्त्री है।
– जब कोई स्त्री मज़बूती से हालातों का सामना करती है, निर्णय लेती है, संघर्ष करती है, तो यह उसके अंदर का पुरुष है।
हम हमेशा अपनी दूसरी आधी को क्यों तलाशते हैं?
जैसे एक नदिया समुद्र की ओर बहती है, जैसे चंद्रमा सूरज की रोशनी से चमकता है, वैसे ही हम अपने भीतर की अधूरी पहचान को पूरा करने के लिए किसी को खोजते हैं।
– एक कलाकार अपनी कला में अपने अधूरे हिस्से को ढूंढता है।
– एक प्रेमी अपनी प्रेमिका में अपने खोए हुए हिस्से को देखता है।
– एक माँ अपने बच्चे में अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने का सपना देखती है।
– एक पिता अपने संघर्षों को बेटे के हौसले में तलाशता है।
लेकिन जब हम किसी से मिलते हैं, तब भी हम अधूरे ही रहते हैं। क्यों? क्योंकि कोई भी दूसरा व्यक्ति हमें पूरी तरह से पूरा नहीं करता। हमारी तलाश बाहर नहीं, अंदर होती है।
अधूरे मिलने का मतलब क्या है?
अगर जीवन में सबकुछ पूरा हो जाए, तो तलाश खत्म हो जाएगी, और तलाश का खत्म होना ही जीवन का ठहराव है। शायद इसीलिए प्रकृति ने हमें अधूरा बनाया है—ताकि हम चलते रहें, बढ़ते रहें, खोजते रहें।
– एक बच्चा हमेशा बड़ा होने की तलाश करता है, लेकिन बड़ा होकर बचपन की मासूमियत को खोजता है।
– एक प्रेमी अपने साथी में पूरा होने का सुख ढूंढता है, लेकिन रिश्ते में आने के बाद भी कहीं न कहीं खालीपन महसूस करता है।
– एक साधु ईश्वर को पाने की यात्रा पर निकलता है, लेकिन जब वह शांति पाता है, तब भी उसकी खोज खत्म नहीं होती।
तलाश ज़रूरी है, लेकिन खुद के अंदर
हम दूसरों में उस अधूरे हिस्से को खोजते हैं, लेकिन असली यात्रा अपने भीतर की होती है। जब हम खुद को समझ लेते हैं, तब हमें बाहर किसी अधूरेपन की चिंता नहीं रहती। हम सब अधूरे हैं, और यही अधूरापन हमें खूबसूरत बनाता है। यह तलाश ही जीवन को अर्थ देती है। इसलिए, अधूरे रहने से मत डरिए—क्योंकि यही अधूरापन आपको आगे बढ़ने, सीखने और खुद को बेहतर बनाने की प्रेरणा देता है।
लेखक परिचय
राकेश यादव गोल्डी एक सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक और कलाकार हैं, जो जीवन, समाज और आत्मअन्वेषण से जुड़े विषयों पर लिखते हैं। उनकी लेखनी मानवीय संवेदनाओं, रिश्तों और आत्मखोज की गहराइयों को छूती है। वे सामाजिक न्याय, युवा नेतृत्व और कला-संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय हैं और विभिन्न अभियानों, कार्यशालाओं और आयोजनों के माध्यम से लोगों को जोड़ने का कार्य करते हैं। राकेश मानते हैं कि हर व्यक्ति अधूरा है, और यही अधूरापन उसे आगे बढ़ने की ताकत देता है। उनके लेख, कविताएँ और विचार समाज के भीतर छिपी गहरी भावनाओं और अनुभवों को सरल भाषा में अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं। उनकी लेखनी सिर्फ शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि संवेदनाओं का संवाद है, जो पाठकों को खुद से जोड़ने का काम करती है।