*पत्रिका समीक्षा*

पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: बोधि धर्मपथ,
अंक 56, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन के लिए धर्मपथ द्वारा प्रकाशित दिसंबर 2024
संपादक: डॉक्टर शिव कुमार पांडेय
मोबाइल 79 0 5515 803
सह संपादक: प्रीति तिवारी
मोबाइल 8318 9008 11
संपर्क: उमाशंकर पांडेय
मोबाइल 9451 99 3 170
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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थियोस्फी और थियोसोफिकल सोसायटी के बारे में जानने की एक सामान्य जिज्ञासा आम जनमानस में रहती है। इस प्रश्न का संक्षिप्त, सरल और मूल हिंदी लेखन में समाधान धर्मपथ के इस अंक में मिल गया है।
डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव ने अपने लेख में बताया है कि थिओसफी शब्द ग्रीक भाषा के थिओस और सोफिया शब्दों को मिलाकर बना है। इसका अर्थ है ब्रह्म और ज्ञान।
मैडम ब्लैवेट्स्की को उद्धृत करते हुए लेखिका ने कहा है कि हम इसकी प्राचीनता को निश्चित नहीं कर सकते लेकिन यह ईसा से पूर्व की विचारधारा है। इसको परिभाषित तो नहीं किया जा सकता लेकिन यह एक शाश्वत सत्य है। जिसके कल्याणकारी और उदार विचार समय के साथ-साथ विस्तार ग्रहण करेंगे। राधा बर्नियर को उद्धृत करते हुए विद्वान लेखिका ने कहा है कि थिओसफी को आत्मसात करने के लिए ‘सत्यान्नास्ति परो धर्म:’ को हृदय में धारण करना होगा।
थियोसोफिकल सोसायटी के तीन उद्देश्यों को जो सब प्रकार के भेदभाव से रहित विश्व मानवता तथा तुलनात्मक धर्म, दर्शन और विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहित करते हैं और मनुष्य में निहित शक्तियों का अनुसंधान करना जिनका उद्देश्य है; इस प्रकार से थिओसॉफिकल सोसायटी के उद्देश्य लेखिका ने वर्णित किए हैं। समस्त जीवन के साथ एकत्व के भाव के साथ मनुष्यता की सेवा थियोस्फी और थियोसोफिकल सोसायटी के चिंतन और क्रियाकलापों का मूल लेखिका ने बताया है।
कई अच्छे लेख पत्रिका में है। तृतीय नेत्र के साथ मानव प्रजातियॉं शीर्षक से शिव कुमार पांडेय का लेख सीक्रेट डॉक्ट्रिन के माध्यम से इस बात की खोज करने का प्रयास है कि मनुष्य की तीसरी ऑंख क्षीण कैसे पड़ गई ? लेख को तैयार करने में सीक्रेट डॉक्ट्रिन की प्रमाणिकता का भरपूर उपयोग लेखक ने किया है। बताया है कि भविष्य में मनुष्य अपनी आध्यात्मिक क्षमताओं को फिर से प्राप्त करेगा तथा यह विलुप्ति स्थाई नहीं है।
आत्मज्ञान ही प्रज्ञान है यह लेख श्याम सिंह गौतम का है। आत्मज्ञान तक पहुंचाने के लिए लेखक ने दुख, लालच, इच्छाएं, क्रोध भय आदि प्रवृत्तियों से मुक्ति को आवश्यक माना है।
मनुष्य स्वयं अपना भाग्य विधाता शीर्षक से एक अच्छा लेख दिन-प्रतिदिन के जीवन में उपयोग में आने योग्य है। इसके लेखक शिव कुमार पांडेय हैं। आपके लेख में कार्य और परिणाम के परस्पर संबंधों को विस्तार से समझाया गया है तथा कहा गया है कि पुनर्जन्म कार्य और परिणाम के चक्र को पूर्णता प्रदान करने के लिए आवश्यक है। कर्म से ही कर्मफल अर्थात परिणाम प्राप्त होते हैं। प्रतिदिन किए जाने वाले कर्म पुराने कर्मफल में परिवर्तन करते रहते हैं । अतः एक प्रकार से हम परिणाम से बंधे हैं तो दूसरी ओर कर्म के लिए स्वतंत्र भी हैं। अर्थात अपने भाग्य के विधाता हम स्वयं हैं। इस प्रकार के लेख समाज में कर्म और भाग्य के बीच के संबंधों को तर्कपूर्वक स्थापित करने में निश्चित ही सहायक सिद्ध होते हैं।
मृत्यु के बाद जीवन शिव कुमार पांडेय का एक गंभीर लेख है। सभी को यह विषय आकृष्ट करता है। लेखक ने बताया है कि मृत्यु के बाद मिलने वाला नर्क और स्वर्ग कोई स्थान विशेष न होकर चेतना की एक स्थिति है। जिसमें दो जन्मों के बीच की अवधि में होकर गुजरना होता है। लेखक ने मृत्यु को नए जीवन का प्रवेश-द्वार बताया है। कहा है कि परम तत्व से एकाकार होना ही हमारा लक्ष्य है। प्रत्येक पुनर्जन्म हमें इस लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का अवसर प्रदान करता है।
पत्रिका के सभी लेख विचार प्रधान हैं । मनुष्य की चेतना को उच्च धरातल पर ले जाने वाले हैं। इनसे पाठकों को जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में निश्चय ही सहायता मिलेगी।
गोरखपुर, भुवाली और वाराणसी में थियोसोफिकल सोसायटी की गतिविधियों के सुंदर चित्र पत्रिका को एक विशिष्ट आभा प्रदान कर रहे हैं। क्रियाकलापों की सूची भी उत्साहवर्धक है। संपादक मंडल को बधाई।