पुरुषोत्तम कहलाना है
विष्णु के वो एक अवतार है, श्री राम जन जन के पालनहार हैं
कौशल्या के लाल दशरथ नंदन, सारे जगत की सरकार हैं
पुरुषोत्तम कहलाना है तो कुछ नहीं,बस मर्यादा में रहना होगा
मर्यादा में मैं बहुत नहीं बस नारी का सम्मान, अपनों की बातों का मन, और सत्य पर चलना होगा
मर्यादा में भी बहुत नहीं बस दुष्कर्मों के रावण से, अधर्म और पाप से, अत्याचार और अन्याय से लड़ना होगा
खुद की मां के कहने पर सिंहासन त्यागना होगा, राज्य अभिषेक से पहले 14 वर्षों तक वन वन भटकना होगा
पुरुषोत्तम कहलाना है तो कुछ नहीं बस मर्यादा में रहना होगा
मर्यादा में भी बहुत नहीं सत्कर्म ही करना होगा धर्म पर चलना होगा
धर्म के लिए कभी विभीषण को लंका भेदी करना होगा
प्राणों से प्यारी अपनी सीता की भी अग्नि परीक्षा लेनी होगी
भाई के लाख बुलावे पर अयोध्या की प्रजा की आवे पर भी बाप की बात का मान रखना होगा
भले ही खड़ाऊ करले राज्य अयोध्या पर, पर खुद 14 वर्षों बाद अयोध्या आना होगा
पुरुषोत्तम कहलाना है तो कुछ नहीं बस मर्यादा में रहना होगा
मर्यादा में भी कुछ नहीं, जिनके जीवन में राजकुमार सा सुख उनको वन की कुटिया में रखना होगा
सत्य जानते हुए भी ना जानों कुछ, कुछ ऐसा भाव रखना होगा
मां सीता की वीर कथा,मां सीता की राम कथा अपने ही पुत्रों के सुर सुनना होगा
अपने पुत्रों की वीर कथा सुनाने को युद्ध का अवघोष करना होगा
अपने पुत्र लव कुश से ज्यादा अपने शिष्य हनुमान को वीर कहना होगा
पुरुषोत्तम कहलाना है तो कुछ नहीं बस मर्यादा में रहना होगा
मर्यादा में भी कुछ नहीं बस रामराज
रामराज्य भी कुछ नहीं, राम सा आचरण रखना
कुछ भी करने से पहले जय श्री राम कहना होगा
मर्यादा में भी कुछ नहीं,सियाराम सा सहना होगा सियाराम सा रहना होगा